________________
53
श्री खीमचन्दभाई : एक असाधारण व्यक्तित्व हिन्दीभाषी आत्मार्थी मुमुक्षु भाइयों का एकमात्र आश्रयस्थल उनका घर ही था। हिन्दी भाषी आत्मार्थी भाई, न केवल अपनी तत्त्वसंबंधी जिज्ञासाएँ उनसे शान्त करते थे; अपितु अपनी ठहरने, रहने, खाने-पीने एवं उठने-बैठने संबंधी असुविधाओं का समाधान भी उनसे ही प्राप्त करते थे। सभी आत्मार्थी मुमुक्षु भाइयों के लिए उनका दरवाजा बिना किसी भेदभाव के सदा खुला रहता था। कोई भी व्यक्ति उनके दरवाजे से कभी निराश न लौटा होगा। ___ अगणित लोगों से अपनापन स्थापित कर उसे निबाह लेने की अद्भुत क्षमता उनमें थी। प्रत्येक व्यक्ति से सहज स्नेहिल-व्यवहार उनकी अपनी विशेषता थी, किसी से भी नाराज होते उन्हें कभी नहीं देखा गया। यदि बापूजी रामजी भाई सोनगढ़ के भीष्मपितामह हैं, तो सदा शान्त रहनेवाले सत्यानुरागी श्री खीमचंद भाई धर्मराज युधिष्ठिर थे।
पूज्य गुरुदेवश्री के महाप्रयाण के बाद उत्पन्न स्थितियों से उनका हृदय अत्यन्त खेदखिन्न था। उनके निराकरण में सम्पूर्णतः सक्रिय रह पाना अस्वस्थ रहने के कारण यद्यपि संभव नहीं रह पाता था, तथापि सत्यपक्ष के सक्रिय समर्थन एवं सहयोग में वे कभी पीछे नहीं रहे । मुमुक्षु समाज की एकता के लिए सर्वस्व समर्पण की उनकी भावना अन्तिम साँस तक व्यक्त होती रही। मृत्यु-शय्या पर लेटे-लेटे भी उन्होंने आदरणीय लालचंदभाई को आश्वासन दिया था कि आप आत्मधर्म के पैसे वापिस करने की चिन्ता न करें। यद्यपि मेरे पास ..... फिर भी मैं .........? __उनके असामयिक महाप्रयाण से समस्त मुमुक्षु समाज के साथ-साथ हिन्दीजगत को सर्वाधिक अपूरणीय क्षति हुई है। मैंने तो अपना एक अत्यन्त स्नेही संरक्षक एवं हर अच्छे काम पर भरपूर पीठ थप-थपानेवाला उत्साह बढ़ानेवाला, सच्चा मार्गदर्शक ही खो दिया है। उनके निधन से मेरी जो व्यक्तिगत अपूरणीय क्षति हुई है, उसे शब्दों में व्यक्त करना संभव नहीं है। मुझे उनका सदा ही पुत्रवत् स्नेह प्राप्त होता रहा है। मेरे समान न मालूम कितने मुमुक्षु भाई हैं, जो इसप्रकार का अनुभव करते होंगे?
श्रीमान् सेठ पूरणचन्दजी गोदीका द्वारा निर्मित श्री टोडरमल स्मारक भवन, जयपुर का शिलान्यास उनके ही पावन कर-कमलों द्वारा संपन्न हुआ था; मुझे