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________________ बिखरे मोती किसी भी रूप में दिगम्बरों का सम्बन्ध भरतक्षेत्र से टूटकर विदेहक्षेत्र से न जुड़ जावे - हो सकता है इस बात को ध्यान में रखकर ही कुन्दकुन्द ने विदेहक्षेत्र-गमन की घटना का कहीं जिक्र तक न किया हो। दूसरे, यह उनकी विशुद्ध व्यक्तिगत उपलब्धि थी। व्यक्तिगत उपलब्धियों का सामाजिक उपयोग न तो उचित ही है और न आवश्यक ही। अत: वे उसका उल्लेख करके उसे भुनाना नहीं चाहते थे। विदेहगमन की घोषणा के आधार पर वे अपने को महान साबित नहीं करना चाहते थे। उनकी महानता उनके ज्ञान, श्रद्धान एवं आचरण के आधार पर ही प्रतिष्ठित है। यह भी एक कारण रहा है कि उन्होंने विदेहगमन की चर्चा तक नहीं की। तत्कालीन समय में लोक में तो यह बात प्रसिद्ध थी ही, यदि वे भी इसका जरा-सा भी उल्लेख कर देते तो यह बात तूल पकड़ लेती और इसके अधिक प्रचार-प्रसार से लाभ के बदले हानि अधिक होती। हर चमत्कारिक घटनाओं के साथ ऐसा ही होता है। अतः उनसे संबंधित व्यक्तियों का यह कर्तव्य है कि वे इनके अनावश्यक प्रचार-प्रसार में लिप्त न हों, जहाँ तक संभव हो, उनके प्रचार-प्रसार पर रोक लगावें, अन्यथा उनसे लाभ के स्थान पर हानि होने की संभावना अधिक रहती है। ___ कल्पना कीजिए कि आचार्यदेव कहते हैं कि मैं विदेह होकर आया हूँ, सीमन्धर परमात्मा के दर्शन करके आया हूँ, उनकी दिव्यध्वनि सुनकर आया हूँ; इसपर यदि कोई यह कह देता कि क्या प्रमाण है इस बात का, तो क्या होता? क्या आचार्यदेव उसे प्रमाण पेश करते फिरते? यह स्थिति कोई अच्छी तो नहीं होती। ___ अतः प्रौढ़ विवेक के धनी आचार्यदेव ने विदेहगमन की चर्चा न करके अच्छा ही किया है, पर उनके चर्चा न करने से उक्त घटना को अप्रमाणिक कहना देवसेनाचार्य एवं जयसेनाचार्य जैसे दिग्गज आचार्यों पर अविश्वास व्यक्त करने के अतिरिक्त और क्या है? । उपलब्ध शिलालेखों एवं उक्त आचार्यों के कथनों के आधार पर यह तो सहज सिद्ध ही है कि वे सदेह विदेह गये थे और उन्होंने सीमन्धर परमात्मा के साक्षात् दर्शन किये थे, उनकी दिव्यध्वनि का श्रवण किया था।
SR No.009446
Book TitleBikhare Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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