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बारहभावना : एक अनुशीलन
गुणभेद से भी भिन्न है आनन्द का रसकन्द है । है संग्रहालय शक्तियों का ज्ञान का घनपिण्ड है ॥ वह साध्य है आराध्य है आराधना का सार है । ध्रुवधाम की आराधना का एक ही आधार है ॥ ३ ॥
यह गुणभेद से भी भिन्न परमपदार्थ आनन्द का कन्द, ज्ञान का घनपिण्ड एवं अनन्त शक्तियों का संग्रहालय है । वह परमपदार्थ साध्य भी है, आराध्य भी है और आराधना का सार भी वही है। ध्रुवधाम निज भगवान आत्मा की आराधना का एकमात्र आधार वही परमपदार्थ निज आत्मा है।
जो जानते इस सत्य को वे ही विवेकी धन्य हैं । ध्रुवधाम के आराधकों की बात ही कुछ अन्य है ॥ अन्यत्व को पहिचानना ही भावना का सार है । एकत्व की आराधना आराधना का सार है ॥ ४ ॥
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जो जीव इस सत्य को जानते हैं, वे ही विवेकी हैं, वे ही धन्य हैं; क्योंकि ध्रुवधाम के आराधकों की बात ही कुछ और है। अन्यत्वभावना का सार आत्मा का पर से भिन्नत्व पहिचानना ही है एवं अखण्ड एक आत्मा की आराधना ही आराधना का सार है ।
तब प्रश्न उठता है कि आखिर 'मैं हूँ कौन?' यदि एक बार यह प्रश्न हृदय की गहराई से उठे और उसके समाधान की सच्ची जिज्ञासा जगे तो इसका उत्तर मिलना दुर्लभ नहीं। पर यह 'मैं' पर की खोज में स्वयं को भूल रहा है। कैसी विचित्र बात है कि खोजने वाला खोजने वाले को ही भूल रहा है। सारा जगत पर की संभाल में इतना व्यस्त नजर आता है कि 'मैं कौन हूँ?' - यह सोचने-समझने की उसे फुर्सत ही नहीं है ।
"मैं" शरीर, मन, वाणी और मोह-राग- -द्वेष, यहाँ तक कि क्षणस्थायी परलक्षी बुद्धि से भिन्न एक त्रैकालिक, शुद्ध, अनादि-अनन्त, चैतन्य, ज्ञानानन्दस्वभावी ध्रुवतत्व हूँ, जिसे आत्मा कहते हैं ।
- मैं कौन हूँ? पृष्ठ ७