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बारहभावना : एक अनुशीलन
है, न अशिव है; न सुन्दर है, न असुन्दर है; क्योंकि जब वह है ही नहीं, तब फिर क्या है, कैसा है?' - आदि प्रश्न ही असम्भव हैं। ___ इस पर आप कह सकते हैं कि हम यह तो नहीं चाहते कि हमारे पुत्रपरिवार हमारे साथ ही जन्में-मरें, दुःख भोगें; फिर भी अकेलापन .....
भाई ! महानता तो एकत्व में ही है, अकेलेपन में ही है। मानव तो अकेला ही जन्मता-मरता है, कूकर-सूकर अवश्य दस पाँच एक साथ पैदा होते देखे जाते हैं। सर्प एकसाथ लाखों पैदा होते हैं। अनन्तों का एकसाथ जन्म-मरण तो निगोदिया जीवों में ही देखा जा सकता है - इसप्रकार यदि गहराई से विचार करें तो जन्म-मरण का साथी खोजने का अर्थ निगोद को आमंत्रण देना है, निगोद की तैयारी है।
इस पर कोई कहे कि निगोद में ही सही, पर साथ मिल तो जायेगा न?
नहीं। साथ नहीं; संग मिलेगा, संयोग मिलेगा। निगोद में भी अनन्त जीवों का संग ही है, संयोग ही है; साथ नहीं; क्योंकि उनमें परस्पर सहयोग नहीं है, मात्र एकक्षेत्रावगाहत्व है।
चक्रवर्तित्व एवं तीर्थङ्करत्व मिल-जुलकर प्राप्त नहीं होते।दो-चार व्यक्ति मिल-जुलकर तीर्थङ्कर या चक्रवर्ती नहीं बनते, तीर्थङ्कर एक ही होता है और चक्रवर्ती भी एक ही। __ भाई! आत्मा का अकेलापन अभिशाप नहीं, वरदान है। जो अकेलापन आज तुम्हें सुहाता नहीं, वस्तुतः वही आनन्द का धाम है। जिस साथ के लिए तुम इतने आकुल-व्याकुल हो रहे हो; वह मात्र मृगतृष्णा है, कभी प्राप्त न होनेवाली कल्पना है।
साथ खोजने के प्रयास न तो आज तक किसी के सफल हुए हैं और न कभी होंगे। इस दिशा में किया गया सारा श्रम व्यर्थ ही जानेवाला है। अच्छी फसल की आशा से पत्थर पर बीज बोने जैसे इस व्यर्थ के श्रम से क्या लाभ है?