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बारहभावना : एक अनुशीलन
निज आत्मा निश्चय-शरण व्यवहार से परमातमा । जो खोजता पर की शरण वह आतमा बहिरातमा ॥ ध्रुवधाम से जो विमुख वह पर्याय ही संसार है।
ध्रुवधाम की आराधना आराधना का सार है ॥३॥ निश्चय से विचार करो तो एक अपना आत्मा ही शरण है, पर व्यवहार से पंचपरमेष्ठी को भी शरण कहा जाता है। इन्हें छोड़कर जो अन्य की शरण खोजता है, अन्य की शरण में जाता है; वह आत्मा बहिरात्मा है, मूढ़ है, मिथ्यादृष्टि है। ध्रुवधाम से विमुख पर्याय ही वस्तुतः संसार है और ध्रुवधाम की आराधना ही आराधना का सार है।
संयोग हैं अशरण सभी निज आतमा ध्रुवधाम है। पर्याय व्ययधर्मा परन्तु द्रव्य शाश्वत धाम है ॥ इस सत्य को पहिचानना ही भावना का सार है।
ध्रुवधाम की आराधना आराधना का सार है ॥४॥ सभी संयोग अशरण हैं और ध्रुवधाम निज आत्मा ही परमशरण है। पर्याय का स्वभाव ही नाशवान है, किन्तु द्रव्य अविनाशी है। इस सत्य को पहिचानना ही अशरणभावना का सार है और ध्रुवधाम निज भगवान आत्मा की आराधना ही वास्तविक आराधना है, आराधना का सार है।
देहदेवल में विराजमान भगवान आत्मा को जानो णविएहिं जं णविज्जई झाइज्जइ झाइएहिं अणवरयं। थुत्वंतेहिं थुणिज्जइ देहत्थं किं पि तं मुणह॥
- मोक्षपाहुड़, गाथा १०३ हे भव्यजीवों! जिनको सारी दुनिया नमस्कार करती है, वे भी जिनको नमस्कार करें; जिनकी सारी दुनिया स्तुति करती है, वे भी जिनकी स्तुति करें एवं जिनका सारी दुनिया ध्यान करती है, वे भी जिनका ध्यान करें - ऐसे इस देहदेवल में विराजमान भगवान आत्मा को जानो।