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अशरणभावना छिद्रमय हो नाव डगमग चल रही मझधार में । दुर्भाग्य से जो पड़ गई दुर्दैव के अधिकार में ॥ तब शरण होगा कौन जब नाविक डुबा दे धार में।
संयोग सब अशरण शरण कोई नहीं संसार में ॥१॥ एक तो छेदवाली नाव हो, मझधार में बह रही हो और वह भी दुर्भाग्य से दुर्दैव के अधिकार में पड़ गई हो; तथा जब नाविक ही उसे मँझधार में डुबाने को तैयार हो तो फिर उसे कौन बचा सकता है? अत: यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि सभी संयोग अशरण हैं, इस संसार में कोई भी शरण नहीं
है।
जिन्दगी इक पल कभी कोई बढ़ा नहीं पायगा। रस रसायन सुत सुभट कोई बचा नहीं पायगा ॥ सत्यार्थ है बस बात यह कुछ भी कहो व्यवहार में।
जीवन-मरण अशरण शरण कोई नहीं संसार में ॥२॥ यह जीवन जबतक है, तबतक ही है; इसका एक पल भी कोई बढ़ा नहीं सकता; जब मौत आ जायगी तो न तो रस-रसायन ही बचा पायेंगे और न सुत (पुत्र), न सुभट अथवा न सुभट-सुत । व्यवहार से कुछ भी कहो, पर सत्य बात तो यही है कि जीवन-मरण अशरण है, संसार में कोई भी शरण नहीं है।