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सब शील संयम गुण सहित जो उन्हें हम मुनिवर कहें ।
बहु
दोष के आवास जो हैं अरे श्रावक सम न वे ॥ १५५ ॥ जीते जिन्होंने प्रबल दुर्द्धर अर अजेय कषाय भट । रे क्षमादम तलवार से वे धीर हैं वे वीर हैं ।।१५६ ॥ विषय सागर में पड़े भवि ज्ञान-दर्शन करों से । जिनने उतारे पार जग में धन्य हैं भगवंत वे ॥ १५७ ॥ पुष्पित विषयमय पुष्पों से अर मोहवृक्षारूढ़ जो । अशेष माया बेलि को मुनि ज्ञानकरवत काटते ॥ १५८ ॥ मोहमद गौरवरहित करुणासहित मुनिराज जो । अरे पापस्तंभ को चारित खड़ग से काटते ।। १५९ ।।
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