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हो घातियों का नाश दर्शन - ज्ञान- सुख-बल अनंते ।
हो प्रगट आतम माहिं लोकालोक आलोकित करें ।। १५० ।। यह आत्मा परमात्मा शिव विष्णु ब्रह्मा बुद्ध है। ज्ञानि है परमेष्ठि है सर्वज्ञ कर्म विमुक्त हैं ।। १५१ ।। घन-घाति कर्म विमुक्त अर त्रिभुवनसदन संदीप जो ।
अर दोष अष्टादश रहित वे देव उत्तम बोधि दें || १५२|| जिनवर चरण में नमें जो नर परम भक्तिभाव से । वर भाव से वे उखाड़े भवबेलि को जड़मूल से || १५३ || जल में रहें पर कमल पत्ते लिप्त होते हैं नहीं । सत्पुरुष विषय - कषाय में त्यों लिप्त होते हैं नहीं || १५४ ||
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