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________________ निजशक्ति के अनुसार प्रतिदिन भक्तिपूर्वक चाव से । हे महायश ! तुम करो वैयावृत्ति दशविध भाव से ॥ १०५ ॥ अरे मन वचन काय से यदि हो गया कुछ दोष तो । मान माया त्याग कर गुरु के समक्ष प्रगट करो ।। १०६ ।। निष्ठुर कटुक दुर्जन वचन सत्पुरुष सहें स्वभाव से । सब कर्मनाशन हेतु तुम भी सहो निर्ममभाव से ॥ १०७ ॥ अर क्षमा मंडित मुनि प्रकट ही पाप सब खण्डित करें। ७सुरपति उरग - नरनाथ उनके चरण में वंदन करें ।। १०८ ।। यह जानकर हे क्षमागुणमुनि ! मन-वचन अर काय से । सबको क्षमा कर बुझा दो क्रोधादि क्षमास्वभाव से ॥१०९॥ ( ६५ )
SR No.009443
Book TitleAshtapahud Padyanuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2002
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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