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शस्त्र श्वासनिरोध एवं रक्तक्षय संक्लेश से। अर जहर से भय वेदना से आयुक्षय हो मरण हो॥२५॥ अनिल जल से शीत से पर्वतपतन से वृक्ष से। परधनहरण परगमन से कुमरण अनेक प्रकार हो॥२६॥ हे मित्र ! इस विधि नरगति में और गति तिर्यंच में। बहुविध अनंते दुःख भोगे भयंकर अपमृत्यु के॥२७॥ इस जीव ने नीगोद में अन्तरमुहरत काल में। छयासठ सहस अर तीन सौ छत्तीस भव धारण किये॥२८॥ विकलत्रयों के असी एवं साठ अर चालीस भव। चौबीस भव पंचेन्द्रियों अन्तरमुहूरत छुद्रभव ।।२९।।
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