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जो जितेन्द्रिय धीर विषय विरक्त तपसी शीलयुत । वे अष्ट कर्मो से रहित हो सिद्धगति को प्राप्त हों ॥३५॥ जिस श्रमण का यह जन्म तरु सर्वांग सुन्दर शीलयुत । उस महात्मन् श्रमण का यश जगत में है फैलता ॥३६॥ ज्ञानध्यानरु योगदर्शन शक्ति के अनुसार हैं । पर रत्नत्रय की प्राप्ति तो सम्यक्त्व से ही जानना ॥३७।। जो शील से सम्पन्न विषय विरक्त एवं धीर हैं। . वे जिनवचन के सारग्राही सिद्ध सुख को प्राप्त हो ॥३८॥ सुख-दुख विवर्जित शुद्धमन अर कर्मरज से रहित जो। वह क्षीणकर्मा गुणमयी प्रकटित हुई आराधना ॥३९॥
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