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शील दर्शन - ज्ञान शुद्धि शील विषयों का रिपू ।
शील निर्मल तप अहो यह शील सीढ़ी मोक्ष की ||२०|| हैं यद्यपि सब प्राणियों के प्राण घातक सभी विष । किन्तु इन सब विषों में है महादारुण विषयविष ||२१|| बस एक भव का नाश हो इस विषम विष के योग से । पर विषयविष से ग्रसितजन चिरकाल भववन में भ्रमें ||२२|| अरे विषयासक्त जन नर और तिर्यग् योनि में । दुःख सहें यद्यपि देव हों पर दुःखी हों दुर्भाग्य से ||२३|| अरे कुछ जाता नहीं तुष उड़ाने से जिसतरह । विषय सुख को उड़ाने से शीलगुण उड़ता नहीं ||२४||
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