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अनेकान्त और स्याद्वाद
अनेकान्तवादी अपने प्रत्येक वाक्य के साथ स्यात् या कथंचित् शब्द का प्रयोग करता है।"
कुछ विचारक कहते हैं कि स्याद्वाद शैली में भी' का प्रयोग है, 'ही' का नहीं। उन्हें 'भी' में समन्वय की सुगंध और 'ही' में हठ की दुर्गन्ध आती है; पर यह उनका बौद्धिक भ्रम ही है। स्याद्वाद शैली में जितनी आवश्यकता 'भी' के प्रयोग की है, उससे कम आवश्यकता 'ही' के प्रयोग की नहीं। 'भी' और 'ही' का समान महत्त्व है। ___ 'भी' समन्वय की सूचक न होकर 'अनुक्त' की सत्ता की सूचक है और 'ही' आग्रह की सूचक न होकर दृढ़ता की सूचक है। इनके प्रयोग का एक तरीका है और वह है - जहाँ अपेक्षा न बताकर मात्र यह कहा जाता है कि 'किसी अपेक्षा" वहाँ भी' लगाना जरूरी है और जहाँ अपेक्षा स्पष्ट बता दी जाती है, वहाँ 'ही' लगाना अनिवार्य है। जैसे - प्रत्येक वस्तु कथंचित् नित्य भी है और कथंचित् अनित्य भी है। यदि इसी को हम अपेक्षा लगाकर कहेंगे तो इसप्रकार कहना होगा कि प्रत्येक वस्तु द्रव्य की अपेक्षा नित्य ही है और पर्याय की अपेक्षा अनित्य ही है। ___ 'भी' का प्रयोग यह बताता है कि हम जो कह रहे हैं, वस्तु मात्र उतनी ही नहीं है, अन्य भी है; किन्तु 'ही' का प्रयोग यह बताता है कि अन्य कोणों से देखने पर वस्तु और बहुत कुछ है; किन्तु जिस कोण से यह बात बताई गई है, वह ठीक वैसी ही है; इसमें कोई शंका की गुंजाइश नहीं है। अतः 'ही' और 'भी' एक दूसरे की पूरक हैं, विरोधी नहीं। 'ही' अपने विषय के बारे में सब शंकाओं का अभाव कर दृढ़ता प्रदान करती है और 'भी' अन्य पक्षों के बारे में मौन रह कर भी, उनकी सम्भावना की नहीं, निश्चित सत्ता की सूचक है। _ 'भी' का अर्थ ऐसा करना कि जो कुछ कहा जा रहा है, उसके विरुद्ध भी सम्भावना है, गलत है। सम्भावना अज्ञान की सूचक है अर्थात् यह प्रकट १. जैनेन्द्रसिद्धान्तकोश, भाग ४, पृष्ठ ४९७ २. 'किसी अपेक्षा' के भाव को स्यात् या कथंचित् शब्द प्रकट करते हैं।