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दशकरण चर्चा
३. यदि कर्मों की सत्ता ही न हो तो उदय कहाँ से कैसा होगा? ४. यदि कर्म का उदय ही न हो तो उदीरणा कैसी होगी ? कर्मशास्त्र का यह सामान्य नियम है कि जिस कर्म का उदय रहता है, उस कर्म की ही उदीरणा हो सकती है।
५. जिस कर्म का बंध हुआ हो, उसमें ही स्थिति अनुभाग बढ़नेरूप कार्य होगा अर्थात् उत्कर्षण होगा।
६. जिस कर्म का बंध हुआ हो, उसमें ही स्थिति - अनुभाग का घटनेरूप कार्य अर्थात् अपकर्षण होगा।
७. कर्म का पहले से ही जीव के साथ बंध हुआ हो तो ही कर्म में संक्रमण अर्थात् परिवर्तन / बदलनेरूप कार्य होगा ।
८. कर्मबंध हुआ हो तो ही उसमें उदय - उदीरणा के न होनेरूप उपशांतकरण का कार्य होगा।
९. यदि कर्म का बंध हुआ हो तो ही संक्रमण और उदीरणा न होनेरूप निधत्ति का कार्य होगा।
१०. यदि कर्म का बंधन हुआ हो तो ही संक्रमण, उदीरणा, उत्कर्षण, अपकर्षणरूप कार्य न होनेरूप निकाचित कर्म बनेगा ।
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संक्षेप में इतना ही हमें समझना है कर्म की बंध अवस्था इन सब कारणों का मूल है । अतः उसे सहज ही प्रथम क्रमांक मिला है। आचार्यों ने बंधकरण का जो स्वरूप शास्त्र में लिखा है उसे क्रम से जानने का हम यहाँ प्रयास करते हैं।
अब बंधकरण आदि दश करणों को शास्त्र के आधार से एवं आगमगर्भित तर्क एवं युक्ति से समझाने का प्रयास करते हैं। करण शब्द के अर्थ :
१. करण शब्द का गणित अर्थ किया जाता है।
२. करण शब्द का प्रसिद्ध अर्थ इंद्रिय है।
Khata
Annanji Adhyatmik Dakara Bok
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विषय-प्रवेश
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३. समयसार की आत्मख्याति टीका में श्री अमृतचंद्राचार्य ने करण नामक एक शक्ति भी बताई है। (43 क्रमांक की शक्ति) ४. जीव के परिणामों को भी करण कहते हैं। जैसे- अधःकरण आदि ।
५. षट्कारक में करण नाम का एक कारक होता है। करण कारक साधन के अर्थ में होता है।
६. करण शब्द यहाँ अर्थात् इस दस करण के प्रकरण में कर्म प्रकृति की विशिष्ट अवस्था के लिए प्रयुक्त हुआ है।
प्राचीनकाल में हुए आचार्यों ने अनेक ग्रन्थों की रचना की है। उनके नाम षट्खंडागम, कषायपाहुड़, तत्त्वार्थसूत्र, गोम्मटसार, पंचसंग्रह आदि ग्रन्थ तथा सर्वार्थसिद्धि, तत्त्वार्थराजवार्तिक, धवला, जयधवला, महाधवला आदि टीका ग्रन्थ हैं। इनमें बंधकरण आदि का विस्तृत विवेचन है । उस विवेचन को संस्कृत-प्राकृत भाषा में ही देने से सामान्य पाठकों को कुछ लाभ तो होगा ही नहीं ।
उन ग्रन्थों के ही विषय का हिन्दी भाषा में अनुवाद विद्वान लोगों ने बड़े परिश्रम के साथ किया है। इसलिए हम उन ग्रन्थों के हिन्दी अनुवाद को ही आवश्यक / योग्य स्थान पर पाठकों को लाभ हो, इस भावना से संक्षेप में देना चाहते हैं । पाठक उसका लाभ अवश्य लेंगे, ऐसी आशा है।
इस 'दशकरण - चर्चा' कृति में हमने बंध, सत्त्व आदि करणों का निम्न ३ विभागों में विभाजित करके स्पष्ट करने का प्रयास किया है। वे विभाग इसप्रकार हैं
१. आगमाश्रित चर्चात्मक प्रश्नोत्तर
२. भावदीपिका - चूलिका अधिकार
३. आगम आधारित प्रश्नोत्तर
अब प्रथमतः बंधकरण पर विचार करते हैं