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दशकरण चर्चा
उनकी स्थिति - अनुभाग बढ़कर ऊपर के निषेकों में उत्कृष्टादि स्थितिअनुभाग को लिये हुए हैं जो कर्म, उनके समान अधिक हो जाते हैं, उसे उत्कर्षण कहते हैं।
तथा ऊपर के निषेकों में उत्कृष्टादि अधिक स्थिति - अनुभाग लिये हुए जो कर्मस्वरूप पुद्गल, उनकी स्थिति अनुभाग घट कर, नीचे के निषेकों में जघन्यादि स्थिति अनुभाग सहित जो कर्म थे, उनके समान हीन हो जाना, उसे अपकर्षण कहते हैं। ऐसा उत्कर्षण- अपकर्षण का स्वरूप जानना ।
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आगमगर्भित प्रश्नोत्तर
१. प्रश्न: उत्कर्षणकरण का स्वरूप क्या है?
उत्तर : १. कर्मों की स्थिति और अनुभाग में वृद्धि होना उत्कर्षण है।
२. नूतन कर्म के बंध के समय पूर्व कर्म की स्थिति में से कर्म परमाणुओं की स्थिति-अनुभाग बढ़ना उत्कर्षण है।
३. जिन कर्म परमाणुओं की स्थिति कम है, उनकी स्थिति तत्काल बंधनेवाले कर्म के संबंध से बढ़ना उत्कर्षण है। (ज.ध. ७ / २४३) ४. उत्कर्षण बंध का अनुगामी है।
५. बंधावस्था में पूर्व की स्थिति या अनुभाग में वृद्धि उत्कर्षण नाम को प्राप्त होती है।
६. उदयावली की स्थिति के प्रदेशों का उत्कर्षण नहीं बनता ।
७. उदयावली के बाहर की स्थितियों का उत्कर्षण यथायोग्य
संभव है।
८. उत्कर्षण बंध के समय में ही होता है।
जैसे - कोई जीव साता वेदनीय कर्म का बंध कर रहा है तो उसमें
सत्ता में स्थित साता वेदनीय के परमाणुओं का ही उत्कर्षण होगा, न कि असातावेदनीय के परमाणुओं का ।
९. सभी कर्म प्रकृतियों में उत्कर्षण होता है। तथा तेरहवें गुणस्थान पर्यंत उत्कर्षण संभव है, आगे नहीं। (गो.क. ४४२)
१०. उत्कर्षित द्रव्य जहाँ दिया जाता है, वह निक्षेप कहलाता है। ११. जहाँ या जिन स्थितियों में उत्कर्षित - अपकर्षित द्रव्य नहीं दिया जाता, वह स्थान या वे स्थितियाँ अतिस्थापना कहलाती है। १२. उत्कर्षित की जानेवाली स्थिति, बध्यमान स्थिति से तुल्य या
हीन होती है; अधिक कदापि नहीं ।