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दशकरण चर्चा वीर्यांतराय - इन पांच प्रकार अंतराय कर्म की उदीरणा होकर उदय को प्राप्त होते हैं। वहाँ दानादि कार्यों का अभाव होता है।
जिस दानांतराय आदि कर्मों की उदीरणा होकर उदय को प्राप्त होते हैं, उन-उन दानादि कार्यों का ही अभाव होता है। जो सुख-दुःख के कारण बाह्य पदार्थ अबुद्धिपूर्वक (बिना प्रयत्न के) दुर्निवार अपने आप ही प्राप्त होते हैं, वहाँ तो अंतरायकर्म का जघन्य उदय जानना और जहाँ सुख-दुःख के कारणभूत पदार्थों का बुद्धिपूर्वक (प्रयत्नपूर्वक) संबंध होने से जो कार्य होता है, उसे उदीरणा होकर कर्म का उदय आया जानना। ___ इसलिए जैसा कर्म का उदय होता है वैसे ही बाह्य पदार्थों का संबंध होता है, वह तो कर्म की स्थिति पूर्ण होकर कर्म का उदय आया जानना । जहाँ पहले बाह्य पदार्थों का निमित्त होने से कर्म का उदय हो, उसे कर्म की उदीरणा होकर उदय आया जानना।। ___ जैसे - पहले पुरुषवेद का उदय होने से कामासक्त होकर स्त्री से संबंध करना, वह तो वेद के उदय से जानना। जो पहले ही स्त्री को देखकर विकारभाव होता है, उसे उदीरणा होकर वेद (कर्म) का उदय है। इसीप्रकार सब कर्मों की उदय-उदीरणा जानना।
तथा उदीरणा, उदय को प्राप्त कर्मों की होती है। जिस गति में जिन कर्मों का उदय पाया जाता है, उन्हीं कर्मों की उदीरणा होती है। जिन कर्मों का उदय नहीं पाया जाता, उन कर्मों की उदीरणा नहीं होती। _ वेदनीय और आयु की उदीरणा तो छठे गुणस्थान पर्यन्त ही होती है। अन्य कर्मों की उदीरणा जहाँ तक अपना (उन-उन कर्मों का) उदय होता है, वहाँ तक ही होती है।
आगमगर्भित प्रश्नोत्तर १. प्रश्न : उदीरणाकरण का स्वरूप क्या है?
उत्तर : अपक्व-पाचन को उदीरणा कहते हैं। धवला १५/४३ । २. प्रश्न : उदय और उदीरणा में क्या अंतर है?
उत्तर : 1. उदय यथाकाल होता है तथा उदीरणा अयथाकाल। उदय से उदीरणा में यह अन्तर है। २. उदीरणा में भी उदयवत फलदान की प्रधानता है। भेद
यथाकाल अयथाकाल का है। श्लोकवार्तिक २/३५ वार्तिक २। ३. उदयकृत परिणामों की अपेक्षा उदीरणा से जो परिणाम होते
हैं, उनमें अधिक तीव्रता होती है। ४. जो महान स्थिति व अनुभाग में अवस्थित कर्मस्कंध
अपकर्षण करके फल देनेवाले किये जाते हैं, उन कर्मस्कन्धों की उदीरणा यह संज्ञा है। (धवला ६, पृष्ठ-२१४) बंधावली के काल के बीतने पर अपकर्षण के द्वारा बद्ध द्रव्य को उदयावली में दिया जाता है, उस कर्मद्रव्य की
उदीरणा संज्ञा है। ३. प्रश्न : उदीरणा के कितने भेद हैं?
उत्तर : उदीरणा के चार भेद हैं - १. कर्म की प्रकृति की उदीरणा को प्रकृति उदीरणा कहते हैं। २. कर्मप्रदेशों की उदीरणा को प्रदेश उदीरणा कहते हैं। ३. कर्म की स्थिति की उदीरणा को स्थिति उदीरणा कहते हैं। ४. कर्मानुभाग की उदीरणा को अनुभाग उदीरणा कहते हैं। कर्मबंध होने के पश्चात् कर्मस्कन्ध आवली कालतक तो उदीरणा आदि के अयोग्य होने से तदवस्थ रहता है।
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