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दशकरण चर्चा
विभाजित किया । ४५, ४५ आया। इन ४५, ४५ को नाम और गोत्र को दिया। शेष एक भाग ३० को आयु कर्म को दिये।
वेदनीयकर्म सुख-दुख का कारण है, इसलिए सुख दुख होते हुये इसकी निर्जरा बहुत होती है। इसकारण अन्य मूलप्रकृतियों के भागरूप द्रव्य प्रमाण से वेदनीय का द्रव्य अधिक है, ऐसा परमागम में कहा है। वेदनीय को छोड़कर शेष सब मूलप्रकृतियों के स्थिति प्रतिभाग से द्रव्य का बँटवारा होता है।
• जिस कर्म की स्थिति बहुत है, उसका द्रव्य अधिक है। • जिसकी स्थिति परस्पर समान है उसका द्रव्य परस्पर समान
जानना ।
जिसकी स्थिति हीन है उसका द्रव्य थोड़ा जानना ।
आयु, गोत्र और वेदनीय को छोड़कर शेष पाँच कर्मों को जो भाग मिलता है, वह उनकी उत्तर प्रकृतियों (ज्ञानावरण ५, दर्शनावरण ९, मोहनीय २८, नाम ९३, अन्तराय ५ ) में यथायोग्य विभाजित हो जाता है।
9. प्रश्न :- स्थितिबन्ध किसे कहते हैं?
उत्तर :- कर्मरूप परिणत हुए कार्माण स्कन्धों में आत्मा के साथ रहने की काल मर्यादा को स्थितिबन्ध कहते हैं।
10. प्रश्न :- • कर्मों का उत्कृष्ट स्थितिबन्ध कितना है?
उत्तर :- पाँच ज्ञानावरण, नव दर्शनावरण, पाँच अन्तराय और दो वेदनीय कर्म का उत्कृष्ट स्थितिबन्ध तीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम प्रमाण है।
दर्शन मोहनीय कर्म का उत्कृष्ट स्थितिबन्ध सत्तर कोड़ाकोड़ी सागरोपम प्रमाण है।
चारित्रमोहनीय का उत्कृष्ट स्थितिबंध चालीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम है।
१. पंचसंग्रह पृष्ठ ७८, पृष्ठ ४९
२. गो. क. ९३, ३. धवला ८/७८
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Ananji Adhyatmik Duskaran Book
(17)
आगम-आधारित प्रश्नोत्तर (बंधकरण) अ. १
नाम और गोत्रकर्म का उत्कृष्ट स्थितिबन्ध बीस कोड़ाकोड़ी सा प्रमाण है।
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आयुकर्म का उत्कृष्ट स्थितिबन्ध तैतीस सागरोपम प्रमाण है। 11. प्रश्न :- मोहनीय कर्म की उत्तर प्रकृतियों का उत्कृष्ट स्थितिबन्ध कितना है ?
उत्तर :- मिथ्यात्वकर्म का उत्कृष्ट स्थितिबन्ध सत्तर कोड़ा-कोड़ी सागरोपम प्रमाण हैं ।
सोलह कषायों का उत्कृष्ट स्थितिबन्ध चालीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम प्रमाण है।
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' पुरुषवेद, हास्य और रति का उत्कृष्ट स्थितिबन्ध दस कोड़ाकोड़ी सागरोपम प्रमाण है ।
नपुंसकवेद, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा का उत्कृष्ट स्थितिबन्ध बीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम प्रमाण है।
स्त्रीवेद का उत्कृष्ट स्थितिबन्ध पन्द्रह कोड़ाकोड़ी सागरोपम प्रमाण है।
12. प्रश्न :- • नामकर्म की उत्तर प्रकृतियों का उत्कृष्ट स्थितिबन्ध कितना है?
उत्तर :मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी का पन्द्रह कोड़ाकोड़ सागरोपम है।
देवगति, देवगत्यानुपूर्वी, समचतुरस्र संस्थान, वज्रवृषभ नाराच संहनन, प्रशस्तविहायोगति, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय, यश कीर्ति का दस कोड़ाकोड़ी सागरोपम प्रमाण है।
• नरकगति, नरकगत्यानुपूर्वी, तिर्यंचगति, तिर्यंचगत्यानुपूर्वी, एकेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय जाति, औदारिक-वैक्रियिक-तैजस कार्मण शरीर, औदारिक और वैक्रियिक अंगोपांग, हुण्डक संस्थान,