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दशकरण चर्चा
बंधकरण आगमाश्रित चर्चात्मक प्रश्नोत्तर अ.१ ९. यदि सत्ता का स्वीकार न हो तो कर्म की अपकर्षणरूप (कर्म
दुनियाँ में छोटे-बड़े अनेक जीव विकाररूप से परिणत होते हुए देखने की स्थिति-अनुभाग घटनेरूप कार्य) अवस्था कैसी होगी?
में आ रहे हैं तो इसका कोई न कोई कारण तो होना ही चाहिए। १०. कर्मबंध के बाद भी कर्म की सत्ता नहीं मानोगे तो संक्रमण
__कारण दो तरह के होते हैं। (1) बहिरंग कारण (2) अंतरंग
कारण। क्रोधादि के बहिरंग कारण बाह्य अप्रिय वस्तुए हैं। जैसे- शत्र (कर्मों के उत्तर प्रकृतियों में बदलनेरूप कार्य, जिसे संक्रमण कहते हैं)
इत्यादि क्रोधादि कषायों के बाह्य कारण समान होने पर भी सभी को कैसे होगा?
समान रूप से क्रोधादि नहीं होते। अतः इसका कोई अंतरंग कारण भी ११. कर्म बंधने के समय में ही उस कर्म का उदय मानोगे तो सत्ता
होना ही चाहिए और वह है, कर्मबंध का उदय। ही नहीं रहेगी तो उदय-उदीरणा न होकर कर्म सत्ता में दबे रहनेरूप
इस अनुमान ज्ञान से भी बंधकरण का अनुमान हो सकता है। उपशांत करण भी कैसे होगा?
अतः बंधकरण को नहीं मानने का अर्थ अनुमानरूप प्रमाण ज्ञान को इसका स्पष्ट अर्थ यह है कि कर्म, बंध अवस्था में फल नहीं दे
नहीं मानने का प्रसंग आयेगा अर्थात् हमें ज्ञान के निषेध करने का दोष सकता । बंध अवस्था में कर्म का मात्र बंध ही होता है। उसी समय से
लगेगा। कर्म की सत्ता होती है। तदनंतर आबाधाकाल के बाद कर्म का
२. दूसरी बात यह भी है कि अनंत सर्वज्ञ भगवंतों ने बंधकरण को उदय आयेगा।
कहा ही है, उसका निषेध करने का अर्थ सच्चे देव के कथन का निषेध
करना है। ___कर्म की दस अवस्थाओं में से सामान्य मनुष्य को सामान्यस्वरूप
३. तीसरी बात आज सर्वज्ञ कथित तत्त्व शास्त्रों में विद्यमान है, से कम से कम तीन को अर्थात् बंध, सत्ता एवं उदय अवस्थाओं को तो
और शास्त्रों में बंधकरण का वर्णन सत्यमहाव्रती मुनिराजों ने किया है। सूक्ष्मता से जानना ही चाहिए तथा दस करणों को मानना ही चाहिए।
यदि हम बंधकरण को नहीं मानेंगे तो सच्चे शास्त्र एवं गुरु की भी हमारी इसलिए बंध अवस्था में स्थित कर्म, बंध के समय/अवस्था में ही फल
यथार्थ मान्यता नहीं रहेगी। देनेरूप कार्य नहीं कर पायेगा।
४. दस करणों में बंधकरण प्रथम क्रमांक का करण है, यदि इसे १३. प्रश्न :- यदि बंधकरण को नहीं मानेंगे तो क्या आपत्तियाँ
अर्थात् बंधकरण को न माना जाय तो आगे के नौ करणों के मानने में आयेंगी?
बहुत बड़ी बाधा आयेगी। इसलिए नौ करणों के मूलभूत विषयरूप उत्तर :- १. संसार में विचरने वाले मनुष्य क्रोधादि कषायों अथवा
बंधकरण को तो विज्ञजन मानेंगे ही मानेंगे। हास्यादि नोकषायों से परिणत होते हुए देखने में आ रहे हैं। प्रत्येक
अतः इस बंधकरण को सभी को मानना ही चाहिए। समझदार मनुष्य भी इन विकारों का हीनाधिकरूप से अनुभव कर ही रहा है। इतना ही नहीं गाय, बैल, भैंसा इत्यादि पंचेन्द्रिय बलवान तिर्यञ्च कषायादि विकारों से परिणत होते हुए देखने में आ रहे हैं। यदि AmAhm mona
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