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________________ आत्मा ही है शरण 92 ४ जुलाई, १९८७ को टेक्सास की राजधानी ओस्टन पहुँचे, जहाँ शतीशजी गोयल के घर ठहरे । शतीशजी ने अपने ही घर पर शताधिक जैनाजैन लोगों को प्रवचन एवं भोजन के लिए आमंत्रित किया था । उनके ही विशेष अनुरोध पर हुए अहिंसा पर मार्मिक प्रवचन ने सभी को अत्यधिक प्रभावित किया । प्रवचनोपरान्त सम्बन्धित विषय पर अनेक महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर भी हुए । ५ जुलाई, १९८७ को फिर एटलान्टा पहुँचे, जहाँ डॉ. कीर्तिशाह के यहाँ ठहरे । प्रवचन व चर्चा भी उन्हीं के घर पर रखे गये । ७ जुलाई को रोचेस्टर पहुँचे जहाँ ७ जुलाई को इन्डियन कम्यूनिटी हाल में तथा ८ जुलाई को प्रवोध शाह के घर पर प्रवचन व चर्चा के कार्यक्रम रखे गये । ९ जुलाई को न्यूयार्क पहुँचे, जहाँ डॉ. धीरू शाह के घर ठहरे । ९जुलाई को उनके घर पर ही क्रमवद्धपर्याय पर एवं १० जुलाई को जैन मन्दिर में आत्मानुभव पर प्रवचन रखा गया । मन्दिर का हॉल खचाखच भरा था, कुछ लोग बाहर भी खड़े थे । कार्यक्रम बहुत ही अच्छा रहा । ११ जुलाई, १९८७ को बोस्टन पहुँचे, जहाँ शैलेन्द्र पालविया के यहाँ ठहरे एवं जैन मन्दिर के हाल में प्रवचन रखा गया । १२ जुलाई, १९८७ को पिट्सवर्ग पहुँचे, जहाँ हिन्दू-जैनमन्दिर में अहिंसा पर मार्मिक प्रवचन हुआ, प्रश्नोत्तर भी हुए । ___ यहाँ की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहाँ हिन्दू और जैन मन्दिर एक साथ बना हुआ है, जिसका नाम है - 'हिन्दू-जैन मन्दिर' । यह एक ऐसा विशाल मन्दिर है, जिसमें एक ही विशाल हाल में अनेक शिखरबंद स्वतन्त्र गर्भगृह हैं । इन अनेक गर्भगृहों में से एक सुरम्य गर्भगृह में स्वतन्त्र रूप से दो जैन मूर्तियाँ पद्मासन विराजमान हैं, जिनमें एक काले संगमरमर की २ फुट ६ इंच की फणवाली पार्श्वनाथ की श्वेताम्बर मूर्ति है और दूसरी सफेद संगमरमर की उतनी ही बड़ी भगवान महावीर की दिगम्बर मूर्ति है।
SR No.009440
Book TitleAatma hi hai Sharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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