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आत्मा ही परमात्मा है
___ अन्य गर्भगृहों में रामपरिवार, शिवपरिवार, विष्णुपरिवार आदि की मूर्तियाँ है । मूल हाल के नीचे एक और हाल है, जो सभागृह के रूप में काम आता है । यहाँ की साज-संभार एवं पूजापाठ के लिए एक सवैतनिक ब्राह्मण पण्डित परिवार रहता है । वही जैनमूर्तियों की जैनविधि से पूजा-पाठ करता है । विश्व में यह अनूठा प्रयोग है ।
यहाँ से हमें शान्तिकुमार महनोत कार द्वारा अक्रोन ले गये । अक्रोन में उन्हीं के घर ठहरना हुआ और १३ जुलाई को प्रवचन व चर्चा का कर्यक्रम भी उनके ही घर पर रखा गया था । अक्रोन क्लीवलैण्ड के पास ही है। अतः यहाँ प्रवचन सुनने अक्रोन के अतिरिक्त क्लीवलैण्ड से भी अनेक लोग आये थे ।
१४ जुलाई, १९८७ को न्यूयार्क आ गये और वहाँ से १५ जुलाई को लन्दन (इग्लैंड) पहुँचे । यहाँ पर १५ जुलाई से १८ जुलाई तक एवं २० जुलाई को प्रतिदिन शाम को ८.३० से १०.३० तक प्रवचन व चर्चा के कार्यक्रम नवनाथ भवन में रखे गये थे । लगभग ३00 लोगों की उपस्थिति में भगवान आत्मा और उसकी प्राप्ति के उपायों पर लगातार ५ दिन तक हुए मार्मिक प्रवचनों एवं गहरी तत्वचर्चा ने सभी को आन्दोलित कर दिया। ___ इसके अतिरिक्त लक्ष्मीचंदभाई के घर पर प्रतिदिन प्रातः १०.३० से १२ वजे तक तत्त्वचर्चा होती थी । १८ जुलाई, शनिवार को ५ से ६ बजे तक प्रेमचन्दभाई के घर पर भी तत्त्वचर्चा रखी गई थी ।
भगवानजी भाई की प्रेरणा से लक्ष्मीचन्दभाई ने अपने नवीन घर में एक स्वाध्याय का कमरा बनाया है, जिसमें उन्होंने हमारे हाथ से पूज्य गुरुदेवश्री के चित्र का अनावरण भी कराया था । स्वाध्याय-कक्ष में अनेक शास्त्रों एवं पुस्तकों के साथ-साथ एक अप्रतिष्ठित जिन-प्रतिभा भी रखी हुई है । भगवानजी भाई सप्ताह में दो दिन प्रवचन और धार्मिक कक्षा का कार्यक्रम चलाते हैं, जिसमें उनके वृहद् परिवार के सभी सदस्यों के साथ-साथ और भी अनेक मुमुक्षुभाई लाभ लेते हैं ।