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आत्मा ही है शरण
एक ऐसा अदभुत और अद्वितीय दर्शनीय प्राकृतिक स्थान है, जिसे देखकर प्रत्येक व्यक्ति आश्चर्यचकित हुए बिना नहीं रहता । यहाँ मीलों गहरी एकदम सीधी - खड़ी खाइयाँ हैं, जिनमें एकदम खड़े नुकीले आकारों वाले अनेक प्राकृतिक स्तूप से खड़े हैं, जिनके सौन्दर्य को देखकर ही अनुभव किया जा सकता है, शब्दों में व्यक्त करना संभव नहीं है ।
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इसके बाद हम ५ जून को लांसएजिल्स पहुँचे । यहाँ पर हम दो दिन रुके, २०० से भी अधिक लोगों की उपस्थिति में कॉलेज के हाल में 'कर्म' विषय पर हुए हमारे प्रवचन ने सभी को अत्यधिक प्रभावित किया । इस विषय पर लोग विस्तार से सुनना चाहते थे, पर समयाभाव से संभव नहीं हुआ ।
७ जून, १९८७ को सान्फ्रांसिको पहुँचे । ७ जून को फ्रीमाउण्ट में हरेन्द्र एवं भावना शाह के घर पर प्रवचन रखा गया । ६५ लोगों की उपस्थिति में सम्पन्न इस कार्यक्रम में आत्मानुभव विषय पर बड़ा मार्मिक प्रवचन हुआ, तत्त्वचर्चा भी अच्छी रही । ८ जून, रविवार को सानहुजो में अशोक एवं सुरेखा पतरावाला के घर कार्यक्रम रखा गया । यह भी बहुत अच्छा रहा ।
यहाँ हिम्मतभाई डगली एवं नवीन भाई दोधिया वीतराग-विज्ञान पाठशाला चलाते हैं, जिसमें बालबोध पाठमाला भाग १ व २ पूरे हो चुके हैं, बालबोध पाठमाला भाग ३ चल रहा है । यहाँ प्रवचन में एक भाई ने बताया कि यहाँ रुड़की (उत्तरप्रदेश - भारत ) से आये एक भाई के नेतृत्व में एक नियमित स्वाध्याय गोष्ठी चलती है, जिसमें धर्म के दशलक्षण, छहढाला एवं सत्य की खोज का स्वाध्याय चल रहा है । इसीप्रकार की एक गोष्ठी और भी चलती है । समयाभाव के कारण हम उक्त गोष्ठियां देखने नहीं जा सके, पर उन गोष्ठियों के सदस्य हमारे प्रवचनों में अवश्य आये थे ।