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________________ 71 आत्मा ही परमात्मा है ___ यहाँ से ९ जून को सियेटिल पहुंचे, जहाँ चन्द्रकान्तभाई एवं नलिनीबेन शाह के घर ठहरे । उस दिन उन्हीं के घर पर 'भगवान महावीर और उनकी अहिंसा' विषय पर प्रवचन हुआ ।। १० जून को चन्द्रकान्तभाई के सुपुत्र एवं धर्मपत्नी नलिनी शाह हमें कार द्वारा कनाडा के सुन्दरतम शहर वैनकुँवर ले गये, जहाँ आनन्द जैन के घर पर प्रवचन रखा गया, जो बहुत ही प्रभावक रहा। ११ जून को वापिस सियेटिल आ गये और शाम को सियेटिल के एक उपनगर में एक भाई के घर प्रवचन रखा गया । __ यद्यपि इस यात्रा में क्षेत्र और काल के अनुरूप अनेक विषयों का प्रतिपादन हुआ, तथापि मेरे प्रिय आध्यात्मिक विषय की प्रमुखता तो सर्वत्र रही ही । जिन-अध्यात्म का मार्मिक विषय 'भगवान आत्मा और उसकी प्राप्ति का उपाय' तो लगभग सर्वत्र चर्चित रहा ही । उक्त विषय का प्रतिपादन करते हुए मैंने जो कुछ कहा, उसका संक्षिप्त सार इसप्रकार है : जैनदर्शन की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह कहता है कि सभी आत्मा स्वयं परमात्मा हैं । स्वभाव से तो सभी परमात्मा हैं ही, यदि अपने को जाने, पहिचाने और अपने में ही जम जाय, रम जाय तो प्रगटरूप से पर्याय में भी परमात्मा बन सकते हैं । जब यह कहा जाता है तो लोगों के हृदय में एक प्रश्न सहज ही उत्पन्न होता है कि जब 'सभी परमात्मा हैं तो 'परमात्मा बन सकते हैं - इसका क्या अर्थ है ? और यदि 'परमात्मा बन सकते हैं - यह बात सही है तो फिर 'परमात्मा हैं - इसका कोई अर्थ नहीं रह जाता है; क्योंकि बन सकना और होना - दोनों एकसाथ संभव नहीं हैं । भाई, इसमें असंभव तो कुछ भी नहीं है, पर ऊपर से देखने पर भगवान होने और हो सकने में कुछ विरोधाभास अवश्य प्रतीत होता है, किन्तु गहराई से विचार करने पर सब बात एकदम स्पष्ट हो जाती है ।
SR No.009440
Book TitleAatma hi hai Sharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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