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________________ आत्मा ही है शरण योग्य है । अतः सबसे पहले हमें आध्यात्मिक शास्त्रों के स्वाध्याय एवं आत्मज्ञानी गुरुओं के सहयोग से, सदुपदेश से निज भगवान आत्मा का स्वरूप गहराई से समझना चाहिए । 68 सहस्राधिक जनसमुदाय की विशाल सभा में अनेक प्रवक्ताओं के बाद सबसे अन्त में हमारा दूसरा व्याख्यान " आत्मानुभव और सम्यग्दर्शन -ज्ञान- चारित्र" विषय पर हुआ, जिसने सभी लोगों में एक अभूतपूर्व हलचल पैदा करदी । परिणामस्वरूप लोगों के विशेष अनुरोध पर भोजन के तत्काल बाद एक हाल में चुने हुए शताधिक जिज्ञासुओं की उपस्थिति में उसी विषय पर हमें एक घण्टे से भी अधिक और भी बोलना पड़ा । चूँकि यह कार्यक्रम पहले से निश्चित नहीं था, अतः सभी लोगों को इसका लाभ नहीं मिल सका, क्योंकि उसीसमय अन्य कार्यक्रम भी चल रहे थे । सबकुछ मिलाकर इस सम्मेलन में पहुँच जाने से सबसे बड़ा लाभ तो यह मिला कि वीतरागी तत्त्वज्ञान उन लोगों तक भी पहुँचा, जिनतक पहुँचने की सहज संभावना नहीं थी; क्योंकि इस सम्मेलन में ऐसे भी बहुत लोग आये थे, जिन्होंने हमें तो कभी सुना ही नहीं था, इस वीतरागी तत्त्व को भी कभी नहीं सुना था और न कभी सुनने की संभावना ही थी । अब उनकी रुचि जागृत हो गई है, जिससे उनके जीवन में आध्यात्मिक मोड़ आने की पूरी-पूरी संभावना है । सम्मेलन के दौरान ही हमारा एक व्याख्यान हिन्दू - सोसाइटी में भी हुआ, जिसमें भारतीय संस्कृति और हिन्दूधर्म की कुछ विशेषताओं पर हुए हमारे इस व्याख्यान को इतना पसंद किया गया कि उस सभा में उपस्थित आधे से अधिक लोग हमारा व्याख्यान सुनने जैना के सम्मेलन में भी आये । इसके बाद हम यहाँ तीन दिन और ठहरे, २५ मई, १९८७ को विभिन्न स्थानों पर हमारे चार प्रवचन हुए । यहाँ एक विशाल जिन मन्दिर बनाने का संकल्प किया गया है, जो शीघ्र ही बनकर तैयार हो जावेगा ।
SR No.009440
Book TitleAatma hi hai Sharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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