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________________ आत्मा ही है शरण किया । परिणामस्वरूप एक कनाडावासी भाई, जिनका नाम ब्रूट्स था और अब बदलकर बलभद्र रख दिया गया है, जैनदर्शन का गहरा अध्ययन करने के लिए २० अक्टूबर को जयपुर पहुँच रहे हैं । वे श्री टोडरमल दि. जैन सिद्धान्त महाविद्यालय में चार माह रहकर अध्ययन करेंगे । उन्होंने अंग्रेजी में अनुवादित मेरी सभी कृतियों का गहरा अध्ययन किया है । उनका आचरण एवं खान-पान एकदम सात्विक हो गया है; वे दूध, दही, घी का भी सेवन नहीं करते और अपना शेष सम्पूर्ण जीवन जिन-साधना में ही व्यतीत करने के लिए कृतसंकल्प हैं । घरबार छोड़कर आत्माराधना के लिए निकल पड़नेवाले ४१ वर्षीय बलभद्रजी अत्यन्त भद्र परिणामी हैं । 64 पश्चिमी देशों की मेरी यह ६३ दिवसीय चतुर्थ विदेशयात्रा २१ मई, १९८७ से अमेरिका के प्रसिद्ध महानगर शिकागो से आरम्भ हुई। शिकागो में २३ व २४ मई को जैना (फैडरेशन ऑफ जैन एसोसियेशन इन नार्थ अमेरिका) का चतुर्थ द्विवार्षिक सम्मेलन था, जिसमें अमेरिका के विभिन्न प्रान्तों, नगरों एवं कनाडा, इंगलैण्ड, सिंगापुर एवं भारत आदि अनेक देशों के लगभग एक हजार प्रतिनिधि शामिल हुए थे । सम्मेलन को देखकर ऐसा लगता था कि एक छोटा भारत ही यहाँ उपस्थित है । हजारों जैन नर-नारियों को एक पंक्ति में जमीन पर बैठकर भारतीय पद्धति से भारतीय भोजन करते देखकर ऐसा लगता था कि हम भारत में ही हैं । इन सबसे विश्वास होता है कि अमेरिका में बसे जैनों में अभी भारतीय संस्कृति और जैन संस्कार पूरी तरह सुरक्षित हैं, और भविष्य में भी रहेंगे । इस सम्मेलन में हमारे तीन व्याख्यान हुए । सर्वप्रथम ध्यान सम्बन्धी कार्यक्रम में ध्यान का स्वरूप स्पष्ट करते हुए हमने कहा कि ध्यान करने योग्य तो एकमात्र परमपदार्थ निज भगवान आत्मा ही है। आजतक जितने भी जीवों ने अतीन्द्रिय आनन्द प्राप्त किया है, सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्र धारण किया है, सिद्धदशा को प्राप्त किया है; उन सभी ने यह सब निज भगवान
SR No.009440
Book TitleAatma hi hai Sharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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