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आत्मा ही परमात्मा है
ज्ञान सर्वसमाधान कारक है, उसका सर्वत्र ही अबाध प्रवेश है । वस्तुविज्ञान का ऐसा कौन-सा क्षेत्र है, जहाँ ज्ञान का प्रवेश न हो ? आज जगत में जो भी वैज्ञानिक चमत्कार दिखाई देते हैं, वे सब ज्ञान के ही कमाल हैं । यदि यही ज्ञान निज भगवान आत्मा में समर्पित हो जावे, उसकी ही शोध-खोज में लग जावे तो इससे भी अधिक चमत्कृत करेगा ।
जड़पदार्थों में लगे इस परोन्मुखी ज्ञान ने दैनिक जीवन के लिए सुविधायें तो भरपूर जुटा दीं, पर वह सुख और शान्ति नहीं जुटा सका । यदि हमें सच्चा सुख और शान्ति प्राप्त करनी है तो जड़पदार्थों की शोध-खोज में संलग्न अपने इस ज्ञान को वहाँ से हटाकर निज भगवान आत्मा की शोध - खोज में लगाना होगा ।
मात्र भारतवासी ही नहीं, भौतिक प्रगति के शिखर को चूम रहे पश्चिमी जगत के लोग भी यह बात गहराई से अनुभव करने लगे हैं, आज वे भी पूर्व (भारत) की ओर भीगी आँखों के प्रति गहरी जिज्ञासा जागृत हो गई है मैंने अपनी इन विदेश - यात्राओं में किया ।
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देखने लगे हैं, उनमें अध्यात्म
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इस बात का गहरा अनुभव
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यद्यपि मेरी इन विदेश यात्राओं का उद्देश्य जैनेतरों में जैनधर्म का प्रचारप्रसार करना कदापि नहीं था, मैं तो उन जैन भारतीय प्रवासियों में ही आध्यात्मिक जागृति लाना चाहता था, जो इसी सदी में भारत से जाकर वहाँ बसे हैं । मेरे सम्पूर्ण व्याख्यान भी हिन्दी भाषा में ही होते रहे हैं । अतः पश्चिम के मूल निवासियों तक मेरी पहुँच होना संभव भी नहीं थी । फिर भी मेरी १५ पुस्तकों के अंग्रेजी अनुवादों ने उन्हें भी आकर्षित किया । मेरी क्रान्तिकारी कृति 'क्रमबद्धपर्याय' ने इस दिशा में विशेष कार्य