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आत्मा ही है शरण
लिस्टर जैन समाज एवं डॉ. नटूभाई शाह के अनुरोध पर हम ११ अगस्त, १९८६ को लिस्टर गये, जहाँ जिनमन्दिर के हॉल में हमारा प्रवचन हुआ । लिस्टर में डॉ. नटूभाई शाह एवं उनके साथियों ने अनुरोध किया कि हमें आगामी वर्ष सात दिन मिलने चाहिये । हम आमसभा में आपके प्रवचन कराना चाहते हैं। ध्यान रहे, तीन लाख की जनसंख्या वाले लिस्टर नगर में साठ हजार गुजराती भाई रहते हैं ।
इसप्रकार अनेक उपलब्धियों से समृद्ध आठ सप्ताह का यह तीसरा विदेश प्रवास १२ अगस्त को लन्दन से रवाना होने पर समाप्त हुआ और हम १३ अगस्त, १९८६ को बम्बई पहुँचे । उक्त विवरण और अपने अनुभव के आधार पर मैं निशंक होकर कह सकता हूँ कि वीतरागी तत्त्वज्ञान के पदचिन्ह अब अमेरिका, कनाडा और इंग्लैण्ड में उभरने लगे हैं । यदि लगातार : प्रयास चालू रखा गया तो निश्चित ही विदेशों में वीतरागी तत्त्वज्ञान का भविष्य उज्ज्वल होगा ।
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इन यात्राओं का एकमात्र उद्देश्य वीतरागी तत्त्वज्ञान को जन-जन तक पहुँचाने के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है । घूमने-फिरने में न तो हमारी रुचि ही है और न हम वहाँ घूमते-फिरते ही हैं । सम्पूर्ण समय प्रवचनों चर्चाओं में ही व्यतीत होता है । सामूहिक कार्यक्रमों के अतिरिक्त व्यक्तिगत चर्चा में भी तत्त्वचर्चा ही होती है । इसतरह हमारा उपयोग भी आभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग ही रहता है ।
वीतरागी तत्त्वज्ञान विश्वभर में जन-जन की वस्तु बने भावना से विराम लेता हूँ ।
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इस पावन