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________________ सुखी होने का सच्चा उपाय आये थे । उनके घर भी एकदिन चर्चा का कार्यक्रम रखा गया । जबेरचन्दभाई एवं अरुण दोशी के घर भी एक-एक दिन चर्चा रखी गई थी । 61 भगवानजीभाई ८५ वर्ष के मुमुक्षु भाई हैं, जो यहाँ नियमित गोष्ठी चलाते हैं । इन्होने हमसे तत्त्वचर्चा के साथ-साथ सोनगढ़ और जयपुर के संदर्भ में भी बहुत विस्तार से चर्चा की । उन्होंने हमें बिना प्रेरणा के स्वतः ही प्रवचन रत्नाकर भाग ५ व ६ की कीमत कम करने के लिये दस-दस हजार एवं भक्तामर प्रवचन की कीमत कम करने के लिये पांच हजार रुपये देने के वचन दिये । इतना ही नहीं, उन्होंने अपने पौत्र कमल भीमजी शाह एवं मीना सोमचन्द शाह को जयपुर में विदेशियों के लिए लगने वाले शिविर में जैनधर्म के अध्ययन के लिए भेजा । यद्यपि शिविर १९ दिसम्बर से २३ दिसम्बर, १९८६ तक पाँच दिन का ही था, तथापि वे ११ दिसम्बर, १९८६ को ही आ गये थे और २७ दिसम्बर, १९८६ तक रहे । इन सत्रह दिनों में वे वालबोध पाठमाला भाग १ - २ - ३ एवं नो दाई सेल्फ का अध्ययन करके गये हैं । उन्होंने लन्दन में नियमित पाठशाला चलाने का भी संकल्प किया है । हमारे लन्दन के कार्यक्रम के परिचय सहित समाचार व विज्ञापन लन्दन से निकलनेवाले समाचार पत्र 'गरवी गुजरात' में प्रकाशित हुये थे उन्हें देखकर मानचेस्टर के डॉ. नरेशभाई शाह ने मानचेस्टर में कार्यक्रम रखने का अनुरोध किया । उनके अति आग्रह को देखकर हम ९ अगस्त, १९८६ को मानचेस्टर गये, जहाँ एक कॉलेज के हॉल में कार्यक्रम रखा गया । हमें यह देखकर आश्चर्य हुआ कि २४ घंटे की सूचना पर भी वहाँ लगभग १५० व्यक्ति उपस्थित थे। हमारा वहाँ का प्रवचन इतना प्रभावक रहा कि डॉ. नरेश शाह हमारे साथ लन्दन चले आये और जबतक हमारे प्रवचन वहाँ होते रहे, तबतक वे वहीं रहे । उनकी पत्नी को बहुत तेज जुकाम हो रहा था, फिर भी वे भी साथ में आई और अन्त तक रहीं ।
SR No.009440
Book TitleAatma hi hai Sharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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