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आत्मा ही है शरण
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इसके बाद ३ अगस्त, १९८६ रविवार को शिकागो पहुँचे, जहाँ एक हॉल में प्रवचन व चर्चा रखे गये । इसके अतिरिक्त एक-एक दिन क्रमशः निरंजन शाह, ज्योत्सना शाह एवं ज्योतेन्द्रभाई के घर चर्चा भी रखी गई । शिकागों में भी अच्छा आध्यात्मिक वातावरण है । ज्योतेन्द्रभाई नियमित गोष्ठी चलाते हैं । ज्योत्सनाबेन सपरिवार डिट्रोयट के शिविर में शामिल हुई थीं। वे वहाँ से एक पुस्तक क्रमबद्धपर्याय (गुजराती) ले आई थीं । जबतक हम शिकागो पहुँचे, तबतक उसे १५ परिवार पढ़ चुके थे । इससे आप अनुमान कर सकते हैं कि अबतक यू.एस.ए. और यू.के. में हमारी जो बीस हजार पुस्तकें पहुंच चुकी हैं, वे मात्र आलमारियों की शोभा नहीं बढ़ातीं, अपितु पूरी तरह पढ़ी जाती हैं । यहाँ भी आगामी वर्ष शिविर रखने का विचार है । मिलवाकी और शिकागो मिलकर दोनों के बीच के किसी एक स्थान पर एक सप्ताह का शिविर रखने की सोच रहे हैं । देखें क्या होता है ?
जैन सोसायटी के मंत्री निरंजन शाह उत्साही कार्यकर्ता हैं, अध्यात्मप्रेमी हैं। वे अपने पिताजी की स्मृति में यदि उपलब्ध हो जावें तो १०० सत्य की खोज (गुजराती) वितरण करना चाहते हैं ।
इसप्रकार हम अमेरिका और कनाड़ा का कार्यक्रम पूरा कर ६ अगस्त, १९८६ को लन्दन पहुँचे, जहाँ जबेरचन्दभाई के घर ठहरे और उसी दिन शाम को श्रीमद्राजचन्द्र के अनुयायी मुमुक्षु भाइयों की नियमित गोष्ठी में हमारा प्रवचन व चर्चा रखी गई । इसमें लगभग ६० से अधिक अध्यात्मप्रेमी भाई-बहिन उपस्थित थे ।।
७, ८ एवं १० अगस्त को नवनाथ भवन में प्रवचन व चर्चा रखी गई, जो बहुत ही प्रभावक रही । उपस्थिति दो सौ से तीन सौ के बीच में रहती होगी। इसके वीडियो कैसेट भी तैयार किये गये । मुम्बासा (कन्या) से आये भगवानजीभाई कचराभाई भी इस वर्ष यहीं हैं । इनके चार सुपुत्र तो यहाँ रहते ही हैं, सबसे बड़े सुपुत्र सोमचन्दभाई भी इस समय यहाँ