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________________ सुखी होने का सच्चा उपाय सार होगा । इसके लिए उन्होंने एक ४५ मिनट का प्रवचन विशेष कराया, जिसमें चार घण्टे के प्रवचनों का सक्षिप्त सार आ गया है । 59 आत्मानुभूति और सम्यग्दर्शन संबंधी प्रवचनों से रजनीभाई इतने प्रभावित हुये कि उन्होंने मुझसे कहा कि इस वर्ष आप जो संस्मरण वीतराग-विज्ञान में लिखें, उसमें इस विषय को भी विस्तार से लिखें और 'विदेशों में जैनधर्म' पुस्तक के आगामी संस्करण में उन्हें शामिल करें तो वे उस 'विदेशों में जैनधर्म' पुस्तक को अमेरिका और कनाड़ा में रहने वाले लगभग चार हजार परिवारों को अपनी ओर से भेंट करेंगे, उसे घर-घर पहुँचाने की व्यवस्था भी वे स्वयं अपने व्यय से ही करेंगे । वे चाहते थे कि इस महत्त्वपूर्ण विषय को अमेरिका में बसे जैनियों के प्रत्येक घर में लिखितरूप में पहुँचना चाहिये । उनकी भावना को ध्यान में रखकर ही मैंने इस वर्ष बहुत कुछ विस्तार से उक्त प्रकरण को सम्पादकीय में सम्मिलित किया है । इसके बाद ३१ जुलाई की रात को हम रालेइध पहुँचे । वहाँ १ अगस्त को प्रवचन व चर्चा रखे गये । यहाँ हम पहली बार ही गये थे । यहाँ मात्र २० घर ही जैनियों के हैं, फिर भी उपस्थिति अच्छी थी । यहाँ प्रवीण शाह उत्साही कार्यकर्ता हैं । वे गतवर्ष समाचारपत्रों से सूचना प्राप्तकर विदेशियों के लिये १९ दिसम्बर, १९८५ से २३ दिसम्बर, १९८५ तक जयपुर में लगनेवाले शिविर में आये थे। हमारी संस्था की गतिविधियों को देखकर इतने प्रभावित हुये कि उन्होंने हमारे बिना कुछ कहे ही हमारी संस्था को दस हजार रुपये जैन सेन्टर रालेइध की ओर से भेंट किये । तभी से वे हमें रालेइध ले जाने के लिये प्रयत्नशील थे। इसके बाद हम २ अगस्त को मिलवाकी पहुँचे । यहाँ अरुण गाँधी के यहाँ ठहरे एवं हॉल में प्रवचन व चर्चा रखे गये । मिलवाकी वालों ने पूरे प्रवचन व चर्चा की वीडियो कैसेट तैयार कराई है । यहाँ भी हम पहली बार ही गये थे, तथापि वे लोग इतने प्रभावित हुये कि आगामी वर्ष शिविर रखना चाहते हैं ।
SR No.009440
Book TitleAatma hi hai Sharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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