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आत्मा ही है पारण
मुझको जैनदर्शन को समझने की सूक्ष्म दृष्टि प्राप्त हुई है । आपकी समझाने की शैली ऐसी अद्भुत है कि उससे कठिन विषय भी रोचक हो जाता है व आसानी से समझ में आ जाता है ।
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शाम को प्रश्नोत्तर के कार्यक्रम द्वारा अनेक भ्रान्त धारणाओं का निराकरण हुआ व और अधिक जानने की इच्छा जागृत हुई । सर्वप्रथम सुना गया आपका क्रमबद्धपर्याय से संबंधित 'कषाय' वाला प्रकरण मेरे गले नहीं उतरा, किन्तु आपकी पुस्तक पढ़ लेने के बाद वह समझ में आ
गया ।
श्री अरविन्द शाह के मकान पर हुये 'अहिंसा' के प्रवचन ने तो इस दिशा में मेरे मस्तिष्क को नई रोशनी दी है ।
आपके इस शिविर में भाग लेने से वास्तव में ही जैनदर्शन को गहराई से जानने की उत्सुकता हुई है । अपनी आत्मा की खोज की यात्रा में आपके आशीर्वाद की प्रार्थना करती हूँ । आगामी वर्ष होनेवाले शिविर में उपस्थित होने की पूर्ण अभिलाषा है । जया नागदा
१९९००, विल्डचेरी, लेन जर्मन टाउन, एम. डी. २०८७४"
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इस शिविर में लाभ लेने के लिये न्यूजर्सी एवं टोरंटो ( कनाड़ा) से भी लोग आये थे । आगामी वर्ष शिविर लगाने के लिये इसी स्थान को २५ जुलाई, १९८७ से २८ जुलाई, १९८७ तक अभी से बुक कर लिया गया है ।
इस शिविर में बारह भावना, महावीर वन्दना एवं ज्ञानानन्द स्वभावी गीत का पाठ प्रतिदिन किया जाता था । बारह भावना का पाठ इतना सुहावना लगा कि रजनीभाई गोशलिया ने घोषणा की कि बारह भावनाओं की कैसिट वे अपनी ओर से उन १०३ घरों को भेंट करेंगे, जो वाशिंगटन जैन सेन्टर के सदस्य हैं । ९० मिनट की इस कैसिट में एक ओर बारह भावना होगी और दूसरी ओर इस शिविर में चले आत्मानुभूति संबंधी प्रकरण का संक्षिप्त