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आत्मा ही है शरण
शिकागो से भी लोग पधारे थे । यह शिविर इतना प्रभावक रहा कि लोगों
जयपुर आकर महीनों रहकर धर्मलाभ लेने की भावना व्यक्त की, वाशिंगटन में लगनेवाले शिविर के लिए रिजर्वेशन कराया । आगामी वर्ष इससे भी विशाल पैमाने पर शिविर लगाने की तैयारी बताई ।
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इस शिविर में बच्चों की कक्षा महेन्द्रभाई, बलभद्रजी, शारदा एवं सुन्दरम् बहिन लेती थीं । महेन्द्रभाई एवं उनकी धर्मपत्नी बच्चों की कक्षा लेने में बारहों मास सक्रिय रहते हैं । उनकी लगन सराहनीय है । बलभद्र, शारदा एवं सुन्दरम् मूलतः अमरीकी हैं, उनके ये नाम श्री चित्रभानुजी के दिए हुए हैं । ये जिनधर्म में गहरी आस्था रखते हैं । भाई बलभद्र तो दीक्षित भी होना चाहते हैं । हमने उन्हें जैनदर्शन के गहरे अध्ययन के बाद ही आगे बढ़ने की सलाह दी। उन्हें अपना सम्पूर्ण इंगलिश साहित्य भेंट किया एवं जयपुर आकर अध्ययन करने का आमंत्रण दिया। यह आश्वासन भी दिया कि उनके रहने, खाने-पीने की सम्पूर्ण व्यवस्था हम अपनी संस्था की ओर से करेंगे । उन्हें पढ़ाने की व्यवस्था भी करेंगे ।
उन्होंने हमारे इस प्रस्ताव पर अपार प्रसन्नता व्यक्त की, आने की पूरी-पूरी तैयारी भी बताई, पर होता क्या है ? - यह सब समय ही बतायेगा ।
यहाँ शिविर के अतिरिक्त भी तीन प्रवचन हुए, जो क्रमशः डॉ. भरत और गीता ठोलिया, महेन्द्र और सरोज शाह एवं जयन्त शाह के घर पर हुये, जो क्रमशः बारह तप, जैनदर्शन की विशेषता एवं आत्मानुभव की प्रक्रिया और क्रम पर हुए । साथ में प्रश्नोत्तर तो होते ही थे ।
इसके बाद हम बिन्डसर होते हुए १६-७-८६ को टोरन्टो (कनाडा) पहुँचे । यहाँ तीनों ही दिन हमारे प्रवचन जैन सेन्टर के हॉल में रखे गये, जिनमें 'सम्यग्दर्शन और उसकी प्राप्ति के उपाय' विषय पर गहराई से प्रकाश डाला गया और गंभीर प्रश्नोत्तर हुये । यहाँ पर आगामी वर्ष शिविर लगाने