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सुखी होने का सच्चा उपाय
इसके बाद डलास में ६ जुलाई को सुधीर शाह के यहाँ तत्वचर्चा एवं ७ जुलाई को हॉल में सम्यग्दर्शन पर प्रवचन व तत्त्वचर्चा हुई ।
डलास से मिनियापिलिस पहुँचे । यहाँ हम पहली बार ही आये थे । यहाँ हिन्दू मन्दिर में 'मैं कौन हूँ' विषय पर मार्मिक प्रवचन हुआ एवं इसी विषय पर एक घंटे तत्त्वचर्चा भी हुई । यहाँ जैनों के अतिरिक्त अनेक अजैन बन्धु भी प्रवचन सुनने पधारे थे, जिनमें दो-तीन दर्शनशास्त्र और इतिहास के प्रोफेसर थे, जिन्होंने वेदान्त और जैनदर्शन पर तुलनात्मक प्रश्न किए । सब-कुछ मिलाकर प्रवचन व तत्त्वचर्चा बहुत अच्छी रही । ___ यहाँ के हिन्दू मन्दिर में सफेद संगमरमर की एकदम बेदाग दो फुट ऊँची अत्यन्त मनोज्ञ जिनप्रतिमा है, जो वहाँ विराजमान सभी हिन्दू प्रतिमाओं में सबसे बड़ी है । हिन्दू मन्दिर में सम्पूर्णतः निरावरण बिना चिन्ह की अत्यन्त मनोज्ञ दिगम्बर प्रतिमा को देखकर मन आनन्दित हो उठा।
उसके बाद १० जुलाई को डिट्रोयट पहुँचे । वहाँ हम ६ दिन रहे, क्योंकि वहाँ शिविर का आयोजन किया गया था । शिविर डिट्रोयट से लगभग ५० मील दूर फ्लिन्ट नामक नगर के पास फ्लन्टन नामक पिकनिक स्पोट पर एक विशाल झील के किनारे रखा गया था, जिसमें १३९ व्यक्ति सम्मिलित हुए थे । यह संख्या तो उन लोगों की है, जिन्होंने शुल्क देकर अपना नाम रजिस्टर कराया था और शिविर में आद्योपान्त रहे; ऐसे भी अनेक लोग थे, जो प्रवचन के समय पर आ जाते थे और बाद में चले जाते थे। इस शिविर में हमारे छह प्रवचन और लगभग छह घटे की तत्त्वचर्चा हुई। 'सम्यग्दर्शन और उसकी प्राप्ति का उपाय' विषय पर हुए प्रवचनों और चर्चा में दृष्टि के विषय की बात बहुत ही विस्तार से स्पष्ट हुई । 'क्रमबद्धपर्याय' पर भी एक व्याख्यान व चर्चा हुई । ___ लोग सुनने को इतने लालायित थे कि चाहते थे कि मैं बोलता ही रहूँ, पर मेरी भी सीमाएँ तो थी ही । इस शिविर में सम्मिलित होने के लिए