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आत्मा ही है शरण
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२८ जून की शाम को ही हम सान्फ्रान्सिस्को पहुँच गये। यहाँ २९ जून रविवार को तीन कार्यक्रम रखे गये थे। प्रातःकाल वीतराग-विज्ञान पाठशाला के बच्चों का कार्यक्रम था । यहाँ हिम्मतभाई डगली और उनके सहयोगी नवीनभाई नियमित पाठशाला चलाते हैं । इसमें ४० छात्र पढ़ते हैं, जिन्होंने बालबोध पाठमाला भाग एक पढ़ लिया है, पास कर लिया है, उन्हें हमारे हाथ से प्रमाण-पत्र वितरण करने का कार्यक्रम था । तीसरी कक्षा से आठवीं कक्षा तक के इन बालकों से दो घंटे तक प्रश्नोत्तर हुए।
सर्वप्रथम लगभग सभी छात्रों ने क्रमशः एक-एक करके णमोकार मंत्र, चत्तारिमंगलं एवं तीर्थकरों के नाम सुनाए । उसके बाद कुछ प्रश्न हमने पूछे, जिनके संतोषजनक उत्तर बालकों ने दिये । उसके बाद प्रत्येक बालक ने क्रमशः एक-एक प्रश्न हमसे पूछा, जिसका समाधान हमने किया । छात्रों द्वारा पूछे गये प्रश्न बड़े ही मार्मिक थे ।
दोपहर में एक बजे से दो बजे तक हिन्दू मन्दिर में व्याख्यान हुआ । हिन्दू मन्दिर में मेरी पुस्तक 'नो दाइ सेल्फ' पहले से ही विद्यमान थी । वहाँ के पण्डितजी ने यह पुस्तक पढ़ी थी, अतः उन्होंने उसी विषय पर बोलने का अनुरोध किया । उनके अनुरोध का सम्मान करते हुए हमने उस विषय पर जो भी विचार रखे, उन्हें सभी ने बहुत पसंद किया। ___ इसके बाद पिकनिक स्पॉट पर एकत्रित समस्त जैन समाज के समक्ष ४ से ६ बजे तक प्रवचन और चर्चा हुई । १ जुलाई, १९८६ को हिम्मतभाई डगली के घर तत्त्वचर्चा रखी गई ।
२ जुलाई, १९८६ को ह्यूस्टन पहुँचे । ३ जुलाई, १९८६ की शाम को प्रदीप शाह के यहाँ तत्त्वचर्चा एवं ४ व ५ जुलाई को एक हॉल में प्रवचन व तत्त्वचर्चा रखी गई। सभी कार्यक्रम बहुत प्रभावक रहे ।