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आत्मा ही है शरण
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पालविया दम्पति ने बताया कि हमें आपकी बारह-भावना बहुत प्रिय है । हम उसकी कैसेट प्रतिदिन सुनते हैं ।
१९ जून, १९८६ को वोस्टन के उपनगर मार्लवरो में श्री नेमीचन्दजी जैन, दिल्ली वालों के यहाँ चर्चा रखी गई, जिसमें आत्मा-परमात्मा के संदर्भ में उपयोगी चर्चा हुई । २० जून, १९८६ को ग्रेटर वोस्टन जैन सेन्टर के अध्यक्ष रतिभाई दोधिया के यहाँ रोड आयरलैण्ड में तत्त्वचर्चा रखी गई, जिसमें आचार में अहिंसा, विचार में अनेकांत, वाणी में स्याद्वाद एवं व्यवहार
में अपरिग्रह विषय पर गहरी चर्चा हुई । ... रतिभाई दोधिया हारमोनियम पर “मैं ज्ञानानंद स्वभावी हूँ" गीत बड़े
ही भावविभोर होकर गाते हैं, हर रविवार को जैन सेन्टर में सबको सामूहिक रूप से भी गवाते हैं । २१ जून, १९८६ को जैन सेन्टर के हॉल में सम्यग्दर्शन के स्वरूप एवं प्राप्ति के उपायों पर एक घंटे तक व्याख्यान एवं एक घटे चर्चा हुई । ___वोस्टन से हम २२ जून, १९८६ रविवार को न्यूयार्क पहुँचे, जहाँ जैन सेन्टर में 'मोक्ष और मोक्षमार्ग' विषय पर एक घंटे व्याख्यान और एक घंटे तत्त्वचर्चा हुई । २३ जून, १९८६ को जब हम रोचेस्टर में किशोरभाई शेठ के घर में प्रवेश करते हैं तो देखते हैं कि वहाँ बारह भावना का कैसेट चल रहा है, जिसे सुनकर मेरा चित्त प्रफुल्लित हो उठा । उनकी माँ व धर्मपत्नी बड़ी ही तन्मयता से उसे सुन रही थीं, जिससे उन्हें हमारे पहुँचने का पता भी न चल सका ।
बारहभावना (पद्य) मेरी एक ऐसी कृति है, जिसे मानो मैंने स्वयं के लिए ही लिखा है, जो मेरे दैनिक पाठ की वस्तु-सी बन गई है । सात समुद्र पार विदेशों में भी उसकी इतनी गहरी पकड़ देखकर मैं सचमुच भाव-विभोर हो उठा । यहाँ २४ जून, १९८६ के शाम को ६.३० से १०.३० तक इन्डियन कम्युनिटी हॉल में व्याख्यान व चर्चा हुई । यह