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आत्मा ही है शरण
भाई, यही हालत हमारे भगवान आत्मा की हो रही है । यद्यपि वह अपना ही है, अपना ही क्या, अपन स्वयं ही भगवान आत्मा हैं, पर भगवान आत्मा में अपनापन नहीं होने से उसकी अनन्त उपेक्षा हो रही है, उसके साथ पराये बेटे जैसा व्यवहार हो रहा है । वह अपने ही घर में नौकर बन कर रह गया है ।
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यही कारण है कि आत्मा की सुध-बुध लेने की अनन्त प्रेरणायें भी कारगर नहीं हो रही हैं, अपनापन आये बिना कारगर होंगी भी नहीं । इसलिए जैसे भी संभव हो, अपने आत्मा में अपनापन स्थापित करना ही एकमात्र कर्तव्य है, धर्म है |
इसीप्रकार चलते-चलते वह लड़का अठारह वर्ष का हो गया । एक दिन इस बात का कोई ठोस प्रमाण उपलब्ध हो गया कि वह लड़का उन्हीं सेठजी का है । उक्त सेठानी को भी यह विश्वास हो गया कि यह सचमुच उसका ही लाड़ला बेटा है ।
अब आप ही बताइये अब क्या होगा ?
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होगा क्या ? वह सेठानी जोर-जोर से रोने लगी । सेठजी ने समझाते हुए कहा
"अब क्यों रोती है ? अब तो हँसने का समय आ गया है, अब तो तुझे तेरा पुत्र मिल गया है ।"
रोते-रोते ही सेठानी बोली "मेरे बेटे का बचपन बर्तन मलते- मलते यों ही अनन्त कष्टों में निकल गया है, न वह पढ़-लिख पाया है, न खेल-खा
पाया ।
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हाय राम ! मेरे ही आँखों के सामने उसने अनन्त कष्ट भोगे हैं, न मैंने उसे ढंग का खाना ही दिया और न पलभर निश्चित हो आराम ही करने दिया, जब देखो तब काम में ही लगाये रखा ।”