SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 54
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आत्मा ही है शरण 48 उसी बेटे के लिए रोती-बिलखती और उसे ही रोटी माँगने पर झिड़कती । क्या है यब सब ? आखिर वह माँ दुःखी क्यों है? क्या कहा, बेटे के अभाव में ? बेटा तो सामने है । बेटे के अभाव में नहीं, बेटे में अपनेपन के अभाव में ही वह माँ परेशान हो रही है, दुःखी हो रही है । उसका बेटा नहीं खोया है, बेटा तो सामने है, बेटे की पहिचान खो गई है, बेटे में अपनापन खो गया है । मात्र पहिचान खो जाने, अपनापन खो जाने का ही यह दुष्परिणाम है कि वह अनन्त दुःख के समुद्र में डूब गई है, उसकी सम्पूर्ण सुख-शान्ति समाप्त हो गई है । उसे सुखी होने के लिए बेटे को नहीं खोजना, उसमें अपनापन खोजना ___ एक दिन पड़ोसिन ने कहा – “अम्माजी । एक बात कहूँ, बुरा न मानना यह लड़का अभी बहुत छोटा है, इससे काम जरा कम लिया करें और खाना भी थोड़ा अच्छा दिया करें, समय पर दिया करें ।" __सेठानी एकदम क्रोधित होती हुई बोली - "क्या कहती हो ? यह काम करता ही क्या है ? दिन भर पड़ा रहता है और खाता भी कितना है ? तुम्हें क्या पता - दिन भर चरता ही रहता है ।" ___ बहुत कुछ समझाने पर भी वह सेठानी यह मानने को तैयार ही नहीं होती कि बच्चे के साथ कुछ दुर्व्यवहार किया जा रहा है । क्या है - इस सबका कारण ? एकमात्र अपनेपन का अभाव । ___ कहते हैं - मातायें बहुत अच्छी होती हैं । होती होंगी, पर मात्र अपने बच्चों के लिए, पराये बच्चों के साथ उनका व्यवहार देखकर तो शर्म से माथा झुक जाता है । यह सभी माताओं की बात नहीं है, पर जो ऐसी हैं, उन्हें अपने व्यवहार पर एक बार अवश्य विचार करना चाहिए ।
SR No.009440
Book TitleAatma hi hai Sharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy