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सुखी होने का सच्चा उपाय
पड़ी । प्रातःकाल तक उसकी हालत ही बदल गई थी, कपड़े गदे हो गये
और चेहरा मलिन, दीन-हीन । ___ बहुत कुछ प्रयत्नों के बाद भी न उसे घर मिला और न घरवालों को वह । भीख मांगकर पेट भरने के अतिरिक्त कोई रास्ता न रहा । थोड़ा बड़ा होने पर लोग कहने लगे - काम क्यों नहीं करता ? आखिर एक हलवाई की दुकान पर बर्तन साफ करने का काम करने लगा । __पुत्र के वियोग में सेठ का घर भी अस्त-व्यस्त हो गया था । अब न किसी को खाने-पीने में रस रह गया था और न आमोद-प्रमोद का प्रसंग ही । घर में सदा मातम का वातावरण ही बना रहता । ऐसे घरों में घरेलू नौकर भी नहीं टिकते; क्योंकि वे भी तो हंसी-खुशी के वातावरण में रहना चाहते हैं । अतः उनका चौका-बर्तन करने वाला नौकर भी नौकरी छोड़ कर चला गया था । अतः उन्हें एक घरेलू नौकर की आवश्यकता थी । आखिर उस सेठ ने उसी हलवाई से नौकर की व्यवस्था करने को कहा और वह सात-आठ साल का बालक अपने ही घर में नौकर बन कर आ गया ।
अब माँ बेटे के सामने थी और बेटा माँ के सामने, पर माँ बेटे के वियोग में दुःखी थी और बेटा माँ-बाप के वियोग में। माँ भोजन करने बैठती तो मुँह में कौर ही नहीं दिया जाता, बेटे को याद कर-करके रोती-बिलखती हुई कहती - 'न जाने मेरा बेटा कहाँ होगा, कैसी हालात में होगा ? होगा भी या नहीं ? या किसी के यहाँ चौका-बर्तन कर रहा होगा ?'
वहीं खड़ा बेटा एक रोटी माँगता तो झिड़क देती - "जा, अभी काम कर, बचेगी तो फिर दूंगी । काम तो करता नहीं और बार-बार रोटी माँगने आ जाता है ।"