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आत्मा ही है शरण
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सात बच्चे भी क्यों न मर जावें, पर जब आठवें बालक को चेचक निकलेगी तो भी वह शीतला माता पर पानी ढोलेगा, किसी डॉक्टर या वैद्य के पास इलाज कराने नहीं जावेगा ।
तथा यदि उसे जुखाम हो जावे और वह किसी वैद्य के पास इलाज कराने के लिए जावे और वैद्य उसे तीन पुड़िया देकर कहे कि इन्हें प्रातः, दोपहर और शाम को ले लेना । पर उसे इतना धैर्य नहीं है कि तीनों पुड़िया खाये । एक पुड़िया खाने पर यदि आराम प्रतीत नहीं हुआ तो शाम को होम्योपैथिक डॉक्टर के पास पहुँच जायगा । यदि उसकी गोलियों से भी रात भर में आराम नहीं हुआ तो प्रातः एलोपेथिक डॉक्टर के पास पहुँच जावेगा ।
वैद्य-डॉक्टरों पर उसे इतना भी भरोसा नहीं है कि एक-दो दिन बंध के इलाज कराले, पर देवी-देवताओं पर उसकी आस्था अटूट है ।
आप कह सकते हैं कि यह बात आप हमें क्यों सुना रहे हैं, हम तो इसप्रकार के भारतीय नहीं हैं, हम तो इलाज के लिए वैद्य-डॉक्टरों के पास ही जाते हैं । यह बात आप उन अंधविश्वासियों को ही सुनाना । पर भाई ! हम भी तो गंभीरता से विचार करें कि कहीं हमसे भी तो उसीप्रकार की भूल नहीं हो रही है । __हमें भूख लगती है तो खाना खा लेते हैं, प्यास लगती है तो पानी पी लेते हैं, चार-छह घंटे को थोड़े-बहुत निराकुल भी हो जाते हैं, पर चार-छह घंटे बाद वही भूख, वही प्यास, वही भयानक आकुलता ।
अनंतकाल से हम अपनी इन बीमारियों का यही इलाज करते आ रहे हैं, पर हमारी ये बीमारियां दूर नहीं हुई हमारी भूख, प्यास, वासनाएँ वैसी की वैसी ही बनी हुई हैं और हम बराबर वही इलाज दुहराते आ रहे हैं, वही दवायें खाते आ रहे हैं, न हम इलाज बदलने को तैयार हैं और न