________________
सुखी होने का सच्चा उपाय
फिरने लगते हैं; न बैठे चैन पड़ती है, न चलते-फिरते और न लेटे-लेटे
ही ।
35
आप कहेंगे कि क्या कोई लेटे-लेटे भी थकता है ? पर भाईसाहब ! इसका पता तो आपको तब लगेगा, जब डॉक्टर बेडरेस्ट बतायेगा । जब आठ दिन तक लगातार लेटे रहना पड़ेगा, तब पता चलेगा कि लेटे-लेटे कैसे थकते हैं ?
इसप्रकार हम देखते हैं कि हमारा चलना-फिरना, उठना-बैठना, सोना, खाना-पीना, निबटना आदि सभी दुःख दूर करने और सुखी होने के लिए ही होते हैं । गहराई से विचार करें तो हमारी छोटी से छोटी क्रिया भी इसी प्रयोजन की सिद्धि के लिए ही होती है । जब हम एक आसन से बैठे-बैठे थक जाते हैं तो चुपचाप आसन बदल लेते हैं और हमारा ध्यान इस क्रिया की ओर जाता ही नहीं है । हम यह समझते ही नहीं हैं कि अभी हमने दुःख दूर करने के लिए कोई प्रयत्न किया है; पर हमारा यह छोटा-सा प्रयत्न भी दुःख दूर करने के लिए ही होता है ।
इसप्रकार हम देखते हैं कि निरन्तर प्रयत्न करने पर भी आजतक हमारे दुःख दूर नहीं हुए । इन दुःखों को दूर करने के लिए हमने जो भी उपाय किये, उनमें से एक भी उपाय कारगर साबित नहीं हुआ ।
क्या यह बात गंभीरता से विचार करने की नहीं है कि आखिर भूल कहाँ रह गई है ?
पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने एक पुस्तक लिखी है – 'डिस्कवरी ऑफ इण्डिया' । उसके 'स्प्रिंट ऑफ इण्डिया' नामक अध्याय में भारतीय लोगों के अंधविश्वासों का चित्रण करते हुए लिखा है कि यदि किसी भारतीय के बच्चे को चेचक निकले तो वह उसकी शान्ति के लिए शीतला माता पर पानी ढोलेगा । पानी ढोलते-ढोलते बालक मर भी क्यों न जावे, तथापि दूसरे बालक को चेचक निकलने पर वही इलाज करेगा । इसप्रकार उसके