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सुखी होने का सच्चा उपाय
जो दुःखों से मुक्त नहीं होना चाहता, सुखी नहीं होना चाहता ? कहा भी है -
"जे 'त्रिभुवन में जीव अनन्त, सुख चाहे दुःख ते भयवन्त ।'
तीन लोक में जितने भी जीव हैं, वे सब सुख चाहते हैं और दुःख से छूटना चाहते हैं ।"
भाई ! दुःख से मुक्त होना, सुखी होना, मोक्ष प्राप्त करना और भगवान बनना - इन चारों का एक ही अर्थ है । पर जब यह कहा जाता है कि दुःख से बचना है, सुखी होना है, तो सभी हाँ करते हैं, पर भगवान बनने या मोक्ष में जाने की बात करते हैं तो लोगों को बड़ी बात लगती है ।
सच बात तो यह है कि हमने मोक्ष का सही स्वरूप नहीं समझा है । शास्त्रों में पढ़कर या लोगों से सुनकर ऐसा जान लिया है कि लोकाग्र में एक स्थान है, जहाँ मोक्ष में जानेवाले उलटे लटक जाते हैं; वहाँ न कुछ खाने-पीने को मिलता है और न वापिस आने की ही सुविधा है, अनन्त काल तक वहीं लटके रहना पड़ता है।
भ्रमण और खाने-पीने के अभ्यासी इस जीव को खाने-पीने से रहित एक स्थान पर रहना क्यों पसन्द आने लगा ? पर भाई ! यह तो मोक्ष की स्थिति है, स्वरूप नहीं; स्वरूप तो उसका अनन्तसुख स्वरूप है, दुःख के अभावरूप है । इसलिए भाई ! मोक्ष पाने या भगवान बनने की बात को बड़ी बात कहकर अरुचि प्रगट मत करो । अपने हित की बात जानकर रुचिपूर्वक ध्यान से सुनो, सुखी होने का एकमात्र यही उपाय है; इसी में सार है और सब असार है ।
इस संकटमयी संसार में चार सार्वभौमिक सत्य हैं -
१. सभी जीव दुःखी हैं । १. पण्डित दौलतराम : यहढाला दाल १. छन्द २