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आत्मा ही है शरण
इस पर कुछ लोग कहते हैं कि हमें मोक्ष में भी नहीं जाना है, हमें तो कोई ऐसा रास्ता बताओ, जिससे इस संसार में रहते हुए ही सुखी हो जावें । पर भाई, ऐसा रास्ता है ही नहीं, तो क्या बताया जाय ? यदि संसार में सुख होता तो तीर्थंकरादि बड़े लोग इस संसार को क्यों छोड़ते ? कहा भी है
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"यदि संसार विषै सुख हो तो तीर्थंकर क्यों त्यागे । काहे को शिव साधन करते संयम सों अनुरागे ॥"
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भाई ! मोक्ष में नहीं जाना है - ऐसा क्यों कहते हो ? जैनधर्म तो मोक्षमार्ग का ही दूसरा नाम है । जैनधर्म के सबसे बड़े शास्त्र का नाम ही मोक्षशास्त्र है, जिसे जैनियों के सभी सम्प्रदाय एक स्वर से स्वीकार करते हैं; जिसे जैनियों की बाइबिल कहा जाता है, जैनियों की गीता कहा जाता है, जैनियों का कुरान कहा जाता है; ऐसे इस महाशास्त्र के पहले सूत्र में ही मोक्ष का मार्ग बताया गया है । कहा गया है कि
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सम्यक्चारित्र
"सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्राणिमोक्षमार्गः सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और इन तीनों की एकता ही मोक्ष का मार्ग है ।" हमारे सबसे बड़े आचार्य ने अपने सबसे बड़े ग्रन्थ में सबसे पहले जो वाक्य कहा, उसमें उन्होंने हमें मोक्षमार्ग ही सुझाया है । उन्होंने हमें मोक्ष - का मार्ग मोक्ष में जाने के लिए बताया है या नहीं जाने के लिए ? यदि जाने के लिए ही उन्होंने हमें मोक्षमार्ग बताया है तो फिर हम मोक्ष में जाने से क्यों इन्कार करते हैं? यह तो सम्पूर्ण जैनधर्म से ही इन्कार करना है । इन्कार करने से पहले हम एक बार मोक्ष का सच्चा स्वरूप तो समझ लें ।
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भाई ! मोक्ष तो मुक्ति को कहते हैं, दुःखों से छूटने को कहते हैं । सम्पूर्ण सुखी होने का नाम ही मोक्ष है, सच्चे सुख की प्राप्ति का नाम ही मोक्ष है । ऐसा जगत में कौन-सा प्राणी है,