________________
31
सुखी होने का सच्चा उपाय
___ध्यान रहे - उक्त व्यक्ति अमेरिका में बारह साल से रहते हैं, श्वेताम्बर
जैन हैं और पू. गुरुदेव श्री कानजी स्वामी से इनका कभी कोई सम्पर्क नहीं रहा है । इनकी धर्मपत्नी जयाबेन भी धर्मरुचि सम्पन्न महिला हैं और ५अक्टूबर से १९ अक्टूबर, १९८६ तक जयपुर में लगनेवाले शिविर में सम्मिलित होने अमेरिका से आई थीं । अपनी माँ, मामा और मामी के साथ १५ दिन रहकर पूरा-पूरा लाभ लेकर कल (२०-१०-८६) ही गई हैं । वे मलाड़ (बम्बई) में लगने वाले शिविर में भी भाग लेंगी ।
यही स्थिति इनके साथी ग्रोगरी, चौकसी आदि परिवारों की है। इसप्रकार की रुचि सम्पन्न थोड़े-बहुत लोग, जहाँ-जहाँ हम गये, लगभग सभी जगह हैं । और भी ऐसे अनेक पत्र हमें प्राप्त हुए हैं, जिनसे यू.के. और यू.एस.ए. में वीतरागी जैन तत्त्वज्ञान के पदचिन्ह उभरते दिखाई पड़ते हैं ।
जिन-अध्यात्म के जिस मूल स्वरूप को हमने लगभग सभी जगह अपनी सरल भाषा और रोचक शैली में सोदाहरण प्रस्तुत किया, उसका सार इसप्रकार है :___ जैनदर्शन की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह कहता है कि सभी आत्मा स्वयं भगवान हैं । स्वभाव से तो सभी भगवान हैं ही, यदि सम्यक्पुरुषार्थ करें अर्थात् अपने को जानें, पहिचानें और अपने में ही जम जावें, रम जावें तो प्रकटरूप से पर्याय में भी भगवान बन सकते हैं । ____ जब हम यह बात जगत के सामने रखते हैं तो कुछ लोग कहते हैं
कि आप तो बहुत बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। पहले हम इन्सान तो बन जावें, फिर भगवान बनने की बात सोचेंगे । पर भाई ! यह बात उतनी बड़ी है नहीं, जितनी बड़ी इसे दुनिया समझती है, क्योंकि भगवान बनना और मोक्ष में जाना एक ही बात तो है । __ जैनधर्म में तो उन्हें ही भगवान कहते हैं, जो मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं । हमें मोक्ष तो प्राप्त करना है और भगवान नहीं बनना है - इसका क्या मतलब है ?