________________
आत्मा ही है शरण
28
करता हो, वह नहीं लड़ने का निर्णय कैसे ले सकता है ? उसे तो अपनी शक्ति के प्रदर्शन का अवसर चाहिए।
एक पहलवान वर्षभर दिन-रात श्रम करता है, क्योंकि उसे विश्वविजेता बनना है । उसके दिमाग में एक कल्पना है कि जब मैं विश्वविजेता बनूंगा, तब विश्व के सभी समाचारपत्रों के मुखपृष्ठ पर मेरा ही चित्र होगा; दूरदर्शन और आकाशवाणी पर भी मैं ही छाया रहूँगा । उससे कहा जाय कि प्रतियोगिताएं स्थगित कर दी गई हैं, तो उसका चित्त इस बात को सहजभाव से कैसे स्वीकार कर सकता है ? इसीप्रकार निरन्तर लड़ने का अभ्यास करने वाले, नहीं लड़ने का निर्णय कैसे ले सकते हैं ? ___ अतः विज्ञान के उपयोग की खुली छूट वैज्ञानिकों को नहीं दी जा सकती, धार्मिकों का मार्गदर्शन आवश्यक है । यदि धर्म और विज्ञान मिलकर काम करेंगे तो दोनों का भला होगा, जगत का भी भला होगा । धर्म और विज्ञान एक-दूसरे के विरोधी नहीं, अपितु पूरक ही हैं ।
हमारे इस विश्लेषण को सर्वत्र सराहा गया ।
इसप्रकार अनेक उपलब्धियों से समृद्ध आठ सप्ताह का यह विदेश प्रवास १२ अगस्त को हमारे न्यूयार्क से रवाना होने पर समाप्त हुआ और हम १४ अगस्त, १९८५ को जयपुर आ पहुँचे ।
मैने गतवर्ष लिखा था कि मैं अपनी इस यात्रा को यू.के. और यू.एस.ए. में गहरे तत्त्वज्ञान के भवन का शिलान्यास समझता हूँ । हमारी कल्पना का भव्य भवन वहीं खड़ा हो पाता है या नहीं - यह तो भविष्य ही बतायेगा, उसके बारे में कुछ भी कहना न तो संभव ही है और न उचित ही, पर आज विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि हमारी भावना अवश्य सफल होगी ।
भगवान महावीर की वीतराग वाणी विश्व के कोने-कोने में गुंजायमान हो - इस पावन भावना से इस यात्रा विवरण से विराम लेता हूँ ।