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________________ आत्मा ही है शरण 26 भी इतने उपलब्ध करा दिए कि हम अपने वातानुकूलित शयनागार में लेटे-लेटे ही दूरदर्शन पर अपरिमित विनाशलीलाओं के दृश्य देखते रहते हैं, समाचार सुनते रहते हैं । आज हमारी स्थिति उस बकरे के समान हो रही है, जिसे सर्व सुविधाएँ तो प्राप्त हैं, पर जो शेर के सामने बँधा है, जिसे अपने जीवन का क्षण भर भी भरोसा नहीं है। शेर के सामने खड़ा रहकर वह अनुकूल भोजन का आनन्द कैसे ले सकता है ? चार विद्वान उच्च शिक्षा प्राप्त कर अपने विषय के विशेषज्ञ होकर घर वापिस जा रहे थे । उनमें एक अस्थिविशेषज्ञ था, दूसरा चर्मविशेषज्ञ, तीसरा जीवविज्ञानी और चौथा आध्यात्मिक विद्या में पारंगत था । मार्ग में पड़े क्षत-विक्षत मृत सिंह को देखकर उन्हें अपनी विद्या की परीक्षा करने की इच्छा हुई । अस्थिविशेषज्ञ ने हड्डियाँ यथावस्थित कर दी, चर्म विशेषज्ञ ने मांस-मज्जा यथास्थान व्यवस्थित कर चमड़ी से वेष्ठित कर दिया, पर जब जीवविज्ञानी उसमें जीव डालने लगा तो आत्मज्ञ ने कहा - ___ "हम लोगों को यह विद्या दुष्ट सिंह को जीवित करने के लिए प्राप्त नहीं हुई है, यह विद्या उन परमोपकारी महापुरुषों को जीवनदान देने के लिए है, जिनके द्वारा जगत का कुछ भला होता हो ।" ___ पर विद्या के मद में मदोन्मत्त लोगों ने उसकी एक न सुनी । आत्मज्ञ उनकी संगति छोड़कर वृक्ष की शाखा पर सवार हुआ कि उन लोगों ने सिंह को जीवित कर दिया । परिणामस्वरूप सिंह ने उन्हें अपना आहार बना लिया । यही हाल आज धर्म के बिना विज्ञान का हो रहा है । धर्म विज्ञान का विरोधी नहीं, किन्तु मार्गदर्शक है । धर्म के मार्गदर्शन में चलने वाले विज्ञान का विकास विनाश नहीं, निर्माण करेगा । घोड़ा और घुड़सवार एक-दूसरे के प्रतिद्वन्द्वी नहीं, पूरक हैं; घुड़दौड़ में दौड़ेगा तो घोड़ा ही, जीतेगा भी घोड़ा ही, पर घुड़सवार के मार्गदर्शन बिना घोड़े का जीतना संभव नहीं । दौड़ना तो घोड़े को ही है, पर कहाँ दौड़ना, कब दौड़ना, कैसे दौड़ना ?
SR No.009440
Book TitleAatma hi hai Sharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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