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विदेशों में जैनधर्म के प्रचार-प्रसार की सम्भावनाएं
____वहाँ से हम वोस्टन पहुंचे, जहाँ हम पहले दिन बुस्टर में संजय शाह के घर प्रवचन-चर्चा का कार्यक्रम रखा गया । दूसरे दिन जैन सेन्टर के हॉल में प्रवचन चर्चा रखी गई । तीसरे दिन डॉ. विनय जैन के घर चर्चा का कार्यक्रम हुआ । ____अन्त में हम सिनसिनाटी पहुँचे, जहाँ जैन फैडरेशन के महामंत्री सुलेख
जैन रहते हैं । वहाँ हिन्दू मन्दिर के हॉल में प्रवचन हुआ । ___ लगभग प्रत्येक स्थान पर एक व्याख्यान तो 'आधुनिक विज्ञान और धर्म' इस विषय पर हुआ ही । इस विषय पर हमने जो कुछ कहा, उसका संक्षिप्त सार कुछ इसप्रकार है - ___ आज के वैज्ञानिक युग में धर्म को भी विज्ञान की कसौटी पर कसकर देखा जाने लगा है । जिस विज्ञान की उन्नति पर हम फूले नहीं समाते हैं, उसने हमें क्या दिया है ? - इसपर भी कभी विचार किया ? इसने जहाँ एक ओर हमें छोटी-मोटी सुविधाएँ एवं सम्पन्नता प्रदान की है। वहीं दूसरी ओर विनाश के कगार पर भी ला खड़ा किया है, हमारी सुख-शान्ति छीन ली है । सुविधाओं के नाम पर आज हमने शयनागारों में ही स्नानागार और शौचालय बना लिए हैं। अब इससे आगे और क्या होगा? शयनागार में तो शौचालय आ ही गए हैं, अब शैया पर ही आना शेष है ।
विज्ञान की कृपा से हमने कितनी ही सम्पत्ति एवं सुविधाएँ क्यों न जुटा ली हों, पर आज हमारी नींद हराम हो गई है । वातानुकूलित शयनागारों में भी हमें नींद क्यों नहीं आती ? हमारा जीवन इतना तनावग्रस्त क्यों होता जा रहा है कि बिना गोलियों के हम सो भी नहीं सकते । अमेरिका जैसे समृद्ध देश में जीवन-रक्षक दवाओं की अपेक्षा नींद की गोलियाँ अधिक बिकती हैं । ___ इस तनावग्रस्त जीवन का उत्तरदायी भी यह विज्ञान ही है, जिसने मात्र विनाश की सामग्री ही तैयार नहीं की, अपितु प्रचार व प्रसार के साधन