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________________ विदेशों में जैनधर्म के प्रचार-प्रसार की सम्भावनाए भाई, मनुष्य और शाकाहारी पशु प्रकृति से दिवाहारी ही होते हैं । अतः जैनधर्म का रात्रिभोजन त्याग का उपदेश प्रकृति के अनुकूल एवं पूर्ण वैज्ञानिक है । 19 रात्रिभोजन त्याग के विरुद्ध एक तर्क यह भी प्रस्तुत किया जाता है कि दो भोजनों के बीच जितना अन्तर रहना चाहिए, दिन के भोजन में वह नहीं मिलता । प्रातः ९-१० बजे खाया और शाम को फिर ४-५ बजे खा लिया । इसप्रकार प्रातः से सायं के भोजन में मात्र ७ घंटे का ही अन्तर रहा और शाम से प्रातः के भोजन में १७ घंटे का अन्तर पड़ जाता है । इस तर्क का उत्तर देते हुए हमने कहा " आपकी मोटर रात्रि को कितना पेट्रोल खाती है ?" "बिल्कुल नहीं ।" "क्यों ?" "क्योंकि वह रात में चलती ही नहीं है, गैरेज में रखी रहती है। गेरेज में रखी मोटर पेट्रोल नहीं खाती। " "भाई यही तो हम कहना चाहते हैं, जब आदमी चलता है, श्रम करता है, तब उसे भोजन चाहिए। जब वह आराम करता है, तब उसे उतना भोजन नहीं चाहिए, जितना कि कार्य के समय । भाई, आपको आराम चाहिए, आपके शरीर को आराम चाहिए, आपकी आँखों को आराम चाहिए इसीप्रकार आपकी आंतों को भी आराम चाहिए । यदि उसे पर्याप्त आराम न देंगे तो वह कबतक काम करेंगी ? मशीन को भी आराम तो चाहिए ही । अतः रात्रिभोजन प्रकृति के विरुद्ध ही है । " डॉक्टर लोग कहते हैं- सोने के चार घंटे पूर्व भोजन कर लेना चाहिए । जब आप १० बजे खाना खाएंगे तो सोएंगे कब ?
SR No.009440
Book TitleAatma hi hai Sharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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