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आत्मा ही है शरण
रात्रिभोजन त्याग के समान पानी छानकर पीना भी विज्ञान सम्मत ही है, पानी की शुद्धता पर जितना आज ध्यान दिया जाता है, उतना कभी नहीं दिया गया। अतः आज का युग तो हमारे इस सिद्धान्त के पूर्णतः अनुकूल है । स्वस्थ जीवन के लिए स्वच्छ पानी आवश्यक ही है । इसप्रकार हम देखते हैं कि जैनाचार एवं जैन- विचार प्रकृति के अनुकूल हैं, पूर्णतः वैज्ञानिक हैं, आवश्यकता उन्हें सही एवं सशक्त रूप में प्रस्तुत करने की है ।
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हमारी संपूर्ण यात्रा का संक्षिप्त विवरण इसप्रकार है
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हमारी इस वर्ष की यह यात्रा एन्टवर्प (विल्जियम) से आरम्भ हुई । इस यात्रा में मेरे साथ मेरी धर्मपत्नी श्रीमती गुणमाला एवं मेरे प्रिय मित्र श्री सोहनलालजी जैन, जयपुर प्रिण्टर्स, जयपुर भी थे । गत वर्ष की भाँति इस वर्ष भी बहुत लोग साथ जाने के इच्छुक थे, पर गत वर्ष के अनुभव के आधार पर इस वर्ष अकेले जाने में ही भलाई प्रतीत हुई ।
धर्मप्रचार और घूमना - दोनों विरोधी कार्य हैं। हम अपना सम्पर्ण कार्यक्रम धर्मप्रचार की दृष्टि से बनाना चाहते हैं और साथ जानेवालों को घूमने की भी इच्छा रहती है, तथा कुछ लोग तो मात्र घूमने के उद्देश्य से ही साथ हो जाते हैं । दूसरे - जिन लोगों ने हमें यहाँ बार-बार सुना है, वे भी सुनने की अपेक्षा घूमने में अधिक रस लेते हैं । धर्मप्रचार और घूमने के स्थान भी अलग-अलग हैं; अतः कार्यक्रम गड़बड़ा जाता है।
हम तो जैन बन्धुओं के घर ठहरते हैं, पर साथियों को होटल में ठहरने की व्यवस्था करनी होती है; क्योंकि अधिक लोगों को घरों में ठहराना सम्भव नहीं होता । इस स्थिति में हमारा साथियों से सम्पर्क भी कट जाता है ।
एन्टवर्प में हम निरुपम मुकुन्दभाई खारा के घर ठहरे। उनके सद्प्रयत्नों से एन्टवर्प का कार्यक्रम आशा से अधिक सफल रहा । वहाँ एक सौ छह लोग प्रवचन सुनने आए थे । एक घंटा 'अहिंसा' पर व्याख्यान