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________________ आत्मा ही है शरण 18 मिलजुल कर ही रहना है, मिलजुल कर रहने से ही सम्पूर्ण मानव जाति का भला है। मांसाहारी शेरों की नस्लें समाप्त होती जा रही हैं, उनकी नस्लों की सुरक्षा करनी पड़ रही है; पर शाकाहारी पशु हजारों की संख्या में मारे जाने पर भी समाप्त नहीं हो पाते। शाकाहारियों में जबरदस्त जीवन-शक्ति होती है। मनुष्य के दांतों और आंतों की रचना शाकाहारी प्राणियों के समान है, मांसाहारियों के समान नहीं। मनुष्य प्रकृति से शाकाहारी ही है। मनुष्य स्वभाव से दयालु प्रकृति का प्राणी है। यदि उसे स्वयं मारकर मांस खाना पड़े तो १० प्रतिशत लोग भी मांसाहारी नहीं रहेंगे। जो मांस खाते हैं, यदि उन्हें वे बूचड़खाने दिखा दिए जायें, जिनमें निर्दयतापूर्वक पशुओं को काटा जाता है तो वे जीवन भर मांस छुयेंगे भी नहीं। मांस के वृहद उद्योगों ने मांसाहार को बढ़ावा दिया है। यदि टी.वी. पर कत्लखाने के दृश्य दिखाए जावें तो मांस की बिक्री आधी भी न रहे। ___ मांसाहारी पशु दिन में आराम करते हैं और रात में खाना खोजते हैं, शिकार करते हैं, पर शाकाहारी दिन में खाते हैं और रात में आराम करते हैं । जब शाकाहारी पशुओं के भी सहज ही रात्रिभोजन त्याग होता है तो फिर मनुष्य का रात्रि में भोजन कहाँ तक उचित है? ___ इस पर एक भाई बोले-आजकल तो शाकाहारी पशु भी रात को खाने लगे हैं, हमने अनेक गायों को रात्रि में खाते देखा है। हमने कहा-हाँ, खाने लगे हैं, अवश्य खाने लगे हैं, आपकी संगति में जो पड़ गए हैं। आपने उन्हें भी विकृत कर दिया है। जब किसी पालतू पशु को आप दिन में भोजन दें ही नहीं, रात में ही दें, तो बेचारा क्या करेगा? किसी वनविहारी स्वतंत्र शाकाहारी पशु को रात्रि में भोजन करते देखा हो तो बताइए?
SR No.009440
Book TitleAatma hi hai Sharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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