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विदेशों में जैनधर्म के प्रचार-प्रसार की सम्भावनाएं
वाशिंगटन में 130 घर जैन सेन्टर के सदस्य हैं। जैन सेन्टर के द्वारा बालबोध पाठमाला भाग १-२-३ एवं वीतराग-विज्ञान पाठमाला भाग १-२-३ अंग्रेजी भाषा की छहों पुस्तकों के सेट प्रत्येक घर पर पहुँचाए गए। आगामी वर्ष के शिविर के लिए अभी से स्थान बुक कर लिया गया है।
प्रवचनोपरान्त जो प्रश्नोत्तर होते थे, उनमें तात्त्विक प्रश्नों के साथ-साथ शाकाहार संबंधी प्रश्न भी प्रायः सर्वत्र आते थे। शाकाहार के विरुद्ध लौट-फिर कर एक ही तर्क प्रस्तुत किया जाता था कि घास-पात में शक्ति नहीं होती।
शाकाहार और सदाचार के संबंध में जो विश्लेषण हमने प्रस्तुत किया, उसका संक्षिप्त सार इसप्रकार है :
मांसाहारी लोग शाकाहारी पशुओं का ही मांस खाते हैं, मांसाहारियों का नहीं। कुते और शेर का मांस कौन खाता है? कटने को तो बेचारी शुद्ध शाकाहारी गाय-बकरी ही हैं। जिन पशुओं के मांस को आप शक्ति का भण्डार माने बैठे हैं, उन पशुओं में वह शक्ति कहाँ से आई है?-यह भी विचार किया है कभी?
भाई, शाकाहारी पशु जितने शक्तिशाली होते हैं, उतने मांसाहारी नहीं। शाकाहारी हाथी के समान शक्ति किसमें है? भले ही शेर छल-बल से उसे मार डाले, पर शक्ति में वह हाथी को कभी प्राप्त नहीं कर सकता। हाथी का पैर भी उसके ऊपर पड़ जावे तो वह चकनाचूर हो जायगा, पर वह हाथी पर सवार भी हो जावे तो हाथी का कुछ भी बिगड़ने वाला नहीं।
शाकाहारी घोड़ा आज भी शक्ति का प्रतीक है। मशीनों की क्षमता को आज भी हार्सपावर से नापा जाता है।
शाकाहारी पशु सामाजिक प्राणी हैं, वे मिलजुल कर झुण्डों में रहते हैं, मांसाहारी झुण्डों में नहीं रहते। एक कुत्ते को देखकर दूसरा कुत्ता भौंकता ही है। शाकाहारी पशुओं के समान मनुष्य भी सामाजिक प्राणी है, उसे