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विदेशों में जैनधर्म के प्रचार-प्रसार की सम्भावनाए
करने, शनि देवता की तेल से पूजन करने और मन्दिर के गूढ गर्भगृह में विराजमान देवता की दीप-धूप से पूजन करने के पीछे भी रहस्य है ।
तुलसी कीटाणुनाशक औषधि है। उसका प्रत्येक आंगन में रहना आवश्यक है, वायु शुद्धि की दृष्टि से भी और सहज उपलब्धि की दृष्टि से भी। तुलसी एक पौधा है, जिसे रोजाना पानी चाहिए। वह कोई विशाल वृक्ष तो है नहीं, जो जमीन के भीतर गहराई से पानी खींच ले। अतः उसकी सुरक्षा के लिए प्रतिदिन जल से पूजन का विधान किया गया ।
पण्डितों ने बताया कि तुलसी की आराधना करने वाले स्वस्थ रहते हैं और उपेक्षा करने वाले बीमार। ठीक ही तो बताया, पर संभाल रखना ही उसकी पूजा है । बीमारियों के घर भारत देश में सौ दवाओं की एक दवा तुलसी यदि आराधना की देवी बन गई तो इसमें क्या आश्चर्य की बात है ? उसकी उपयोगिता ने ही उसे पूज्य बनाया है।
मन्दिर के गूढ गर्भगृह में, न जहाँ पर्याप्त प्रकाश रहता, न आर-पार वायु का विचरण; दर्शनार्थ जानेवालों को दीपक ले जाना आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है तथा कीटाणुओं के शोधन के लिए धूप जलाना भी आवश्यक है। गर्भगृह की वायुशुद्धि के लिए धूप एवं पर्याप्त प्रकाश के लिए किये गये दीपक पूजा के विधान को अवैज्ञानिक कैसे कहा जा सकता है?
हाँ, यह अवश्य हुआ है कि स्वास्थ्य की दृष्टि से आवश्यक बातों को पूजा का रूप प्रदान कर दिया गया है। देह के प्रति उपेक्षा वर्तनेवाले आध्यात्मिक देश में यदि इन्हें धार्मिक रूप प्रदान न किया जाता तो इन्हें दैनिक क्रिया के रूप में अपनाने को कोई तैयार ही न होता।
दीपक से भगवान की आरती करते हैं और शादी के अवसर पर सास जमाई की भी आरती करती है। कहाँ भगवान और कहाँ जमाई ? पर इसमें भी रहस्य है। भगवान की विशाल प्रतिमा को छोटे से दीपक के प्रकाश . में सर्वांग देख पाना संभव नहीं है। हाथ में दीपक लेकर प्रभु की प्रतिमा